Thursday, September 3, 2009

ख़त्म होनेवाला है मुश्किल दौर...

ख़त्म होनेवाला है मुश्किल दौर। ये वो लाइन है जो अनिकेत ने कई बार लिखी थी और अब वो उसे बोलना सीख रहा था। अनिकेत की उम्र 19 साल है लेकिन, दिमागी रूप से वो 10 साल का भी नहीं है। मानसिक रूप से विकलांग अनिकेत दिल्ली के विशेष स्कूल मासूम दुनिया में पढ़ता है। ये स्कूल उसके मम्मी और पापा मिलकर चलाते है। दिल्ली के द्वारका इलाके में निचली बस्तियों में रहनेवाले मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के लिए स्कूल चलानेवाली ये दंपति ख़ुद को ख़ास मानती हैं। श्री और श्रीमती न्याल का मानना है कि वो ख़ास है इसलिए ही भगवान नो उन्हें इतना ख़ास बच्चा दिया है। अपने एक शूट के सिलसिले में जब मैं वहां पहुंची तो उस वक़्त सभी बच्चे पढ़ाई कर रहे थे। यहां पढ़ाई उम्र के मुताबिक़ नहीं दिमागी समझ के मुताबिक़ तय होती है। इस मासूम दुनिया में अलग-अलग तरह के मानसिक विकलांगता से जुड़े बच्चे पढ़ते हैं। ऐसा नहीं है कि यहां ये बच्चे माता-पिता के साथ आते हो। अधिकतर माँ-बाप तो इन बच्चों को बोझ समझते है। ऐसे में इन दोनों ने मिलकर इन बस्तियों में जाकर ऐसे बच्चों इकठ्ठा किया था। यहाँ पढ़ रहे ये मासूम बच्चे अपने घरों से दुत्कारे हुए हैं। कुछ के माँ-बाप रिक्शा चलाते हैं तो कुछ के मजदूरी करते हैं। कई बच्चे ऐसे हैं जो उम्र में तो 30 साल के है लेकिन, ख़ुद से खाना तक नहीं जानते हैं। ऐसे में न्याल दपंत्ति इन्हें इतना सक्षम बना देते हैं कि ये बच्चे अपने बुनियादी कामों के लिए किसी पर निर्भर ना हो। श्री न्याल बताते है कि जब उन्हें ये मालूम चला था कि उनका छोटा बेटा मानसिक रूप से विकलांग है वो खूब रोए थे। लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने बच्चे पर पूरा ध्यान दिया उसे विशेष स्कूल में पढ़ाया और उसकी परवरिश पूरे इत्मिनान और ध्यान से की। अपने बड़े बेटे को अपने पैरों पर खड़ा होने लायक़ कर देने के बाद न्याल ने तय किया कि वो सिर्फ़ अनिकेत के लिए ही कुछ नहीं करेंगे बल्कि उसके जैसे और भई बच्चों को पढ़ाएगे। इसके लिए उन्होंने कई निचली बस्तियों का दौरा किया, कई गालियाँ खाई लेकिन, हिम्मत नहीं हारी। जब भी वो ऐसे बच्चों के माता-पिता से बात करते वो इनका मज़ाक बनाते कहते कि कलेक्टर बना दोगे क्या इस पागल को। लेकिन, इनका जवाब एक ही होता कि- वो उन्हें इस समाज में जीना सिखा सकते हैं। अनिकेत अददान सामी का फ़ेन हैं और उसके गाने गाता हैं। ऐसे ही अखिल बहुत बेहतरीन माऊथ ऑर्गन बजाता है। अनिल ख़ूबसूरत पेंटिंग बनाता हैं। हरेक में एक खूबी है जो हमें नज़र नहीं आती हैं। न्याल दंपत्ति का मानना है कि ये बच्चे हमें सिखाते है कि हरेक काम आराम से करना चाहिए हमेशा भागते नहीं रहना चाहिए...

2 comments:

अनिल कान्त said...

आपका लेख बहुत अच्छी सीख देता है

अनूप शुक्ल said...

बेहतरीन पोस्ट! शुक्रिया इसे यहां पोस्ट करने का!