Friday, November 18, 2011

रॉकस्टार के ज़रिए एक सोच की समीक्षा...

रॉकस्टार- एक ऐसे लड़के की कहानी जो न प्यार को समझ सका और न अपने अंदर छुपे संगीत के हुनर को। केवल लोकप्रिय हो जाना ही समझ का पैमाना नहीं होता हैं। पूरी फिल्म में कहीं उसे संगीत से प्यार करते नहीं देखा। बिल्कुल वैसे ही जैसे प्यार करते भी नहीं देखा। जनार्दन को हीर बस होना चाहिए... शायद अंतिम सीन में वो महसूस कर पाया कि वो प्यार करता था या फिर ये कहे कि वो प्यार के अहसास को समझ सका। इम्तियाज़ अली की अब तक की निर्देशित चारों फिल्में देखने के बाद ये महसूस हुआ कि सभी फिल्मों के नायक-नायिका बहुत व्यवहारिक हैं। हालांकि जब वी मेट की गीत अंशुमन से प्यार करती थी। लेकिन, अंत में यही हुआ कि वो प्यार नहीं आकर्षण निकला और प्यार को तो एक दम अंतिम समय में समझ पाई। लव आजकल में तो युवाओं की इस सोच पर निर्देशक कम कहानीकार ने ऋषि कपूर के किरदार के ज़रिए खुद ही चोट कर दी थी। प्यार को न समझनेवाले सैफ के किरदार को ये मालूम था कि उसे क्या करना है, कहाँ नौकरी, कहाँ घर... वो केवल प्यार को ही नहीं समझ सका। यही हाल रहा जनार्दन का... हीर उसे होना चाहिए... क्यों होना चाहिए? ये वो अंत तक नहीं समझा सका। फिल्म जिस उम्र से शुरु होती हैं उसे मैं जी चुकी हूँ और जिस उम्र पर खत्म होती है उसे जी रही हूँ। इसलिए ये दावे से कह सकती हूँ कि इन सभी फिल्मों के किरदार बहुत व्यवहारिक है और भावुक नाममात्र को। मुझे मेरे भावुक होने और मेरे भावनात्मक लगाव के बारे में कई प्रकार के ज्ञान मिल चुके हैं लेकिन, इन किरदारों को देखकर लगता हैं कि ये बेवकूफ नहीं हैं और ये पहले से ही जानते हैं कि दरअसल सबकुछ भावनात्मक लगाव ही हैं। ज़िंदगी में उसी भावनात्मक लगाव पर आकर गाड़ी रूक जाती हैं। लेकिन, सिनेमा में इससे आगे बढ़कर जबरन में फिर प्यार में तब्दील हो जाती हैं। यही वजह है कि गीत अंशुमन के सामने आदित्य को किस करती हैं या मीरा हनीमून के पहले दिन अपने पति को छोड़ देती हैं और हीर शादी के दो साल बाद जानार्दन से संबंध बनाती हैं... इन फिल्मों से और इन किरदारों से आप टुकड़ों में प्रभावित हो पाते हैं... कइयों के मन से आवाज़ आती हैं काश मैं भी ऐसा कर पाता/पाती... और, मुझे लगता है कि सच में ये सिनेमा ही है... क्योंकि, असल ज़िंदगी में या तो हम व्यवहारिक है या तो हम भावुक...

3 comments:

डॉ .अनुराग said...

हिंदी सिनेमा के दर्शक एक .स्टीरियो टाइप हीरो के आदि है .वे उसे वैसा ही देखना चाहते है .....रोंक स्टार से इससे अलग है ......मूलत प्रेम कहानी ...
रॉक स्टार किसी उदास शाम की भीगी बरसात की तरह है ...जिसके कुछ छींटे आपके दिल पर भी पड़ते है .इस बरसात के कई सुर है कई लय है ..दुःख के दर्द के तल्खियो के ....कुछ खुशियों के ...दुःख अन प्लांड होते है ...खुदा की विरासत ...आप उसमे दखल नहीं दे सकते....उंचाई अटरेक्ट करती है .पर ऊंचाई पर कितना अकेला पन है .शोहरत" क्रूड" है ..सबके चेहरे बदल देती है .दोस्तों के भी....अस्पताल में जब वो कहता है ...मुझे बड़ा नहीं बनना ....तो हौल के एक अँधेरे कोने में वो बरसात आप को भी भिगो देती है रॉक स्टार एक प्रेम कहानी है ..ओर प्यार के पेरेलल चलती एक दुनिया ...गिटार पूरी फिल्म में एक सहायक किरदार है .....पर इश्क एक लम्बी अँधेरी सुरंग है जहाँ आग है जो बहुत जलाती है .जनार्धन को जोर्डन के लिबास में उतरने का जनून है ..लिबास तक का सफ़र अनप्रेडिकटेबल है .. हमारी भाषा में जिसे डेस्टिनी कहते है .....लिबास में जाने क्या है ..... हमेशा मुस्कराने वाला नौजवान गुम होने लगा है ... उस लिबास के बावजूद कुछ खालीपन है , .क्या है ?जो बचा है ? उसे भरने के लिए उसे इसी दुनिया के मैदान में उतरना है ..".हीर" उसका आइना है जिसमे वो खुद को देख पाता है ..पर इस दुनिया के मैदान के रुल जुदा है ...!! प्यार कहाँ ओर कब दाखिल होता है .आप नहीं जान पाते ...पर प्यार!!!! पर प्यार कभी कभी आपको रोक देता है ...आपके वजूद को भी...प्यार उसी मोड़ पर खड़ा है जहाँ से सही ओर गलत की दिशा में दो रस्ते जाते है .. दिल ओर दिमाग की वही बरसो पुरानी लड़ाई !!! उस मोड़ पर संभलना मुश्किल है ..... जोर्डन के भीतर अब भी वही दिशाहीन जिद्दी बच्चा है ...विद्रोही पर दिशाहीन ..... !! इस दुनिया के रुल के मुताबिक वो "फायूल" करता है ....फाइन !! फाइन उसके वजूद में तल्खिया भरता है ...आगे रास्ता धुंधला है .दुःख ओर दर्द . से भरा..रिबेलियन दिशाहीन बच्चा आत्महन्ता की ओर बढ़ता है लगातार........ एक वक़्त उसे जोर्डन का लिबास उतारना है "उसे बड़ा नहीं बनना ".. पर चीज़े उसके हाथ से फिसलने लगी लगी है ..नॉन रिवार्सिबेल स्टेज पर ......

डॉ .अनुराग said...

रणबीर बटोर एक्टर अपने आप को मीलो आगे खींच लाये है कभी कभी ऐसा लगता है जैसे वे कैमरे को भूल गए है .किरदार के भीतर बैठ गए है ..जनारधन से जोर्डन तक के सफ़र में वो आप को अपने साथ ले चलते है .....लम्बे बाल बढ़ी दाढ़ी उन्हें सूट करती है ...मोहित इस फिल्म को देखने की दूसरी वजह है .मोहित रणवीर की आवाज लगते है ..ठीक उसी तरह जैसे मुकेश राज कपूर की......शायद ये फिल्म उनके लिए ही बनी थी ..वे एफर्टलेस है ....नेचुरल गिफ्टेड जानते है रहमान को उनसे क्या चाहिए ...दर्द ओर उन्माद की सारी रेंज में वो उसी फॉर्म में है .....
इरशाद ओर रहमान इस फिल्म को देखने की तीसरी वजह है ..इस फिल्म की रूह .....इरशाद जैसे किरदार के साथ साथ चलते है ......
इस हसरत को निचोड़ दूँ / आ बांहों में आ तोड़ दूँ / तुझे छीन लूँ या छोड़ दूँ ...... लिखने वाला शख्स अब भी मौलिक है...इस फ़िल्मी दुनिया में रहकर भी ...."मुझसे ही रिहा कर दे " लिखने वाला शख्स कोई मौलिक ही हो सकता है ..उनके लिरिक्स इस कहानी की पल्स को समझते है ओर इस ख़ूबसूरती से के आप वापस लफ्जों की ताकत पर एतबार करने लगते है ...कहानी का सबसे कमजोर लिंक "हीर" है ....वे आर्टिफिशियल है ..हीर इस कहानी का महवपूर्ण किरदार है ..गौर से देखे तो हीर का करेक्टर अपने आप में मुकम्मल है.....नर्गिस बला की खूबसूरत है पर हीर को वो उंचाई नहीं दे पाती .जिस पागलपन को जिस जज्बे की इस कहानी को जरुरत है .कहानी के सबसे महत्वपूर्ण सीनों में वे कमजोर है .इतनी की उससे कहानी की कंटीन्यूटी ओर निर्देशक जो कहना चाहता है उस पर फर्क पड़ता है .....फिल्म के कई हिस्से है जिन्हें आप एक्सटेंड करना चाहते है ....कश्मीर वाले हिस्से को...रणवीर के .घर की उस बच्ची वाले हिस्से को जिसने बावजूद सारे घर के अब भी उससे दिल का रिश्ता कायम रखा है ...सोचा न था के बाद अक्सर इम्तियाज़ ने कही न कही अपने आप को ओर उसी कहानी को कही न कही दोहराया है शायद उसे दूसरे तरीके से कहने की कोशिश ....वे नौजवानों को रिप्रेजेंट करते है ..इस पीढ़ी को ...वे इसकी कन्फ्यूज़न स्टेट को बखूबी समझते है तभी उनकी अब की सारी फिल्मो के किरदार अपनी मंजिल कुछ ओर तय करते है पर लौटना उन्हें प्यार की ओर है ....उनकी सबसे बड़ी खासियत उनकी फिल्मो के डाई लोग है ..चाहे वो कल आज कल हो या सोचा न था या जब वी मेट वे इस जेनरेशन की जुबान बोलते है ....चुनते है ......अपनी कहानी को सलीके से कहने की ....यहाँ वे थोडा मिस कर गए है पर फिल्म देखने जैसी है ..रणबीर के ड्रेस डिजायनर ने भी इनोवेशन दिखाया है ....फिल्म में काफी कुछ ऐसा है जो ओर बेहतर हो सकता था ...शायद इम्तियाज़ से हमें ज्यादा अपेक्षाये है..हम सब कुछ परफेक्ट चाहते है ....इम्तियाज़ इस बात को जानते है ...बेहतर रचने का दबाव झेलते हुएअपने आप को दोहराने के खतरे से बचते हुए परफेक्ट तो नहीं पर कुछ नया रच जाने में सफल रहे है ...जरूर देखिये....फिल्म एक बार देखने जैसी है ...मेरे जैसे लोग इसे कई बार देखना चाहेगे ......

डॉ .अनुराग said...

एक लम्हा आपकी जिंदगी को ट्रांसफोर्म कर देता है ......फकत एक लम्हा ......….हाँ ये फिल्म उस तरह नहीं है जैसा मै सोच कर गया था ..कुछ कुछ "गाइड" के राजू गाइड की तरह …जो प्राग में अरेस्ट होकर अपना पुर्नजन्म करेगा बतोर रॉक स्टार .......पर हर आदमी एक सा नहीं होता .. इसलिए हर कहानी एक सी नहीं होती ... ..कुछ ठहर जाते है स्थिर ..कुछ जिद्दी बच्चे की तरह पाना चाहते है ...मै इसे दूसरे नजरिये से देखता हूँ ..वो जान गया है... जोर्डन एक झूठ है ...हीर के पास गिना चुना वक़्त ... इसलिए अपनी शोहरत ओर उस दुनिया को छोड़ अपना वक़्त हीर को देता है....ये जानते हुए भी की इससे उसकी तबाही निश्चित है ...... इस बार फिर "फायूल" ! सच्चा प्यार फायूल ही तो है ...
काश इस फिल्म की एडिटिंग थोड़ी सही होती ओर इम्तियाज़ ने थोडा ओर वक़्त लिया होता तो !!
पर ऐसे कई काश है ....जो पूरे नहीं होत