Monday, June 22, 2009

माँ के बिना...

मैं 25 साल की हूँ और पिछले 3 साल से दिल्ली में अकेली रह रही हूँ। आज भी जब ऑफ़िस से रूम जाती हूँ तो रूम का ताला खोलने में रुलाई आती है। आज भी जब थकी हुई हालत में खाना बनाती हूँ तो mummy की गर्म रोटियाँ याद आती हैं। घर पर रहते हुए आज तक मैंने कभी ख़ुद से खाना तक नहीं परोसा था। हर बार mummy ही खाना देती थी...

वही, मेरे ऑफ़िस में मेरी एक सहकर्मी अपनी चार साल सात महीने की बेटी के लिए एक बोर्डिंग स्कूल खोज रही हैं। मेरी सहकर्मी और उसका पति दोनों ही नौकरी पेशा हैं और मीडिया में होने के कारण उनकी शिफ़्ट भी लगातार बदलने वाली है। ऐसे में बेटी को स्कूल छोड़ना, फिर लाना, फिर किसी झूलाघर में छोड़ना संभव नहीं है। मेरी सहकर्मी इस बात से फ़िलहाल बेहद परेशान है और दिनभर वो इसी विषय में बातें करती रहती हैं। वो बताती है कि उसकी बेटी को पहले वो दो साल के लिए अपनी माँ के घर रख चुकी है, लेकिन अब वो वहाँ भी नहीं रख सकती क्योंकि माँ की ज़िम्मेदारियाँ (भाई के बच्चे) बढ़ गई हैं और फिर उड़ीसा वो साल में एक बार ही जा पाती हैं। ऐसे में बेटी से केवल एक बार मुलाक़ात होती थी। अब वो दिल्ली में ही एक अच्छा-सा बोर्डिंग खोज रही है जिससे हफ़्ते में एक बार मिल सके उससे। उसके ससुराल में भी ऐसा कोई नहीं जो उनके साथ रह सके और सास की तबीयत ऐसी है कि उन्हें सेवा की ज़रूरत है। मेरी सहकर्मी परेशान है।

मेरी सहकर्मी से ज़्यादा मैं परेशान हो रही हूँ। मुझे लगातार ये बात लग रही है कि मैं इतनी बड़ी और परिस्थितियों को समझने वाली लड़की जब पिछले तीन सालों में ख़ुद को इस अकेलेपन में ढाल नहीं पाई है, तो कैसे वो चार साल सात महीने की लड़की यूँ अकेले रह पाएगी। कॉलेज के दिनों तक मैं ख़ुद से चोटी नहीं कर पाती थी। दिल्ली आकर मैंने रोटी बनाना और कपड़े धोना सीखा। कैसे वो बच्ची माँ और पापा के बिना कुछ भी कर पाएगी। जिस उम्र में उसे नई बातें सीखना चाहिए कैसे वो हर काम खु़द से करना सीखेगी। कैसे रहेगी वो माँ के बिना। मेरी नज़रों के सामने उस बच्ची का चेहरा घूम रहा है। अगर मैं उसकी जगह होती तो शायद अपनी माँ से इतना ज़रूर पूछती कि- जब वक़्त नहीं था मेरे लिए तो जन्म ही क्यों दिया मुझे...

17 comments:

Ganesh Prasad said...

आपका नाम तो नहीं जनता पर हा आपने जरुर कुछ ऐसा कहा है जो सभी को कुछ पल के लिए सोचने पर मजबूर कर दे... माँ की ममता ही कुछ ऐसी है जिसे भुलाया नहीं जा सकता... हो सके तो अपने सहेली को अपने दर्द को एहसास जरुर कराये ....

कुछ नया लिखने के लिए बधाई !!! लिखते रहे...

नीरज मुसाफ़िर said...

अजी अकेला वकेला कोई नहीं होता. सब ऐसे ही होते हैं. कभी हमारी घुमक्कडी के किस्से पढो तो पता चले.

हिन्दीवाणी said...

आपकी पोस्ट दिल को छू गई और इसी बहाने मुझे अपनी अम्मी की याद आ गई। बहुत अच्छा लिखा है। इस सिलसिले को जारी रखें।

bhawna said...

bahut sundar ....mujhe apni maa ki yaad aa gayi .....

gazalkbahane said...

अभी कस्बा जिन्दा है आप में उसे खोने न दें

ब्लॉग जगत पर पहला कदम रखने पर आपका स्वागत
उम्र भर साथ था निभाना जिन्हें
फासिला उनके दरमियान भी था
-‘.जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस......’
इस गज़ल को पूरा पढें यहां
श्याम सखा ‘श्याम’

http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें

प्रकाश गोविंद said...

आपकी बात दिल कों छूती हुयी जहन में कई सवाल भी छोड़ जाती है....

वक्त सबको जीना सिखा देता है !

मेरी हार्दिक शुभकामनाएं

कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें ! लगता है कि शुभेच्छा का भी प्रमाण माँगा जा रहा है। इसकी वजह से प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक
परेशानी होती है !

तरीका :-
डेशबोर्ड > सेटिंग > कमेंट्स > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > सेलेक्ट नो > सेव सेटिंग्स

आज की आवाज

पंडितजी said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.

Udan Tashtari said...

बच्ची को तो खैर वक्त रहना सीखा देगा मगर माँ बाप की केरियर के प्रति यह दौड़ और जद्दोजहद मेरी समझ से हमेशा ही परे रही है, हो सकता है वो ज्यादा समझदार हों.

RAJNISH PARIHAR said...

aaj ka sabse bada sach yahi hai...bheed me bhi hum akele hai....

Unknown said...

baat dil ko chhoo gai.

Unknown said...

मनुष्य अपनी भ्रामक महत्त्वाकांक्षाओं में खुद अपनी राह चुनता है, और फिर पता नहीं क्यों शिकायतों में रहता है।
बस तकलीफ़ इतनी सी हो रही है कि आपने तो यह नियति खुद चुनी है परंतु वह बच्ची अपने चुनाव की नहीं वरन माता-पिता की सांयोगिक गलती का खामियाज़ा भुगतेगी।
हो सकता है इस कठोर ज़िंदगी के सबक उसे एक बेहतर परिपक्व इंसान बनने में मदद करें।

Pradeep Kumar said...

man ke bhavon ko sundar shabdon main abhivayakt kiya hai .
badhaai

hindi-nikash.blogspot.com said...

आज आपका ब्लॉग देखा.......... बहुत अच्छा लगा.. मेरी कामना है की आपके शब्दों को नए अर्थ, नई ऊंचाइयां और नई ऊर्जा मिले जिससे वे जन-सरोकारों की सशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति का समर्थ माध्यम बन सकें.
कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें-
http://www.hindi-nikash.blogspot.com

सादर, सद्भाव सहित-
आनंदकृष्ण, जबलपुर

शशांक शुक्ला said...

बताइये आपको मां की तब याद आई जब आप खुद को परेशानी में थीं। सोचिये कुछ लोग तो ऐसे होते है कि खुशी के पल में मां को याद करत हैं लेकिन वो उनके पास नहीं होती

सागर नाहर said...

बतख के बच्चे को कोई तैरना नहीं सिखाता, इससे वह डूब नहीं जाता।
वक्त और जरूरत हमेशा सब कुछ सिखा देती है।
हां माँ जरूर हमेशा याद आती है सुख हो या दुख:।

अच्छी पोस्ट के लिये बधाई स्वीकार करें।
॥दस्तक॥|
गीतों की महफिल|
तकनीकी दस्तक

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

Anonymous said...

सुन्‍दर। शुभकामनाएँ।