कभी पुलिया पर बैठे किचकिच करते थे... अब कम्प्यूटर पर बैठे ब्लागिंग करते हैं...
Monday, July 20, 2009
ये जीना भी कोई जीना है लल्लू...
मेरा सप्ताहांत टीवी देखकर ही बीतता है। फ़िलहाल टीवी के ट्रेन्ड के मुताबिक़ ये दिन पूरी तरह से टेलेन्ट शो के लिए समर्पित रहते हैं। ऐसे में मैं पूरे वक़्त यही देखती रहती हूँ। हालांकि ऐसे शो की समीक्षक आए दिन बखिया उखाड़ते रहते हैं, फिर भी मुझे इन्हें देखने में आनंद आता है। कइयों में सचमुच कई प्रतिभाशाली लोग आते हैं लेकिन, चैनल की नौंटकी के चलते ही मन कचवा जाता है। मम्मी के सुपर स्टार में भी यही हाल था। इसमें बच्चों के गाने पर कम और मम्मी के झगड़ों पर ज़्यादा ध्यान जाता था। ऐसा ही हाल है लिटिल चैम्प का है। इस शो में आए बच्चे इतना बढ़िया गाते है कि क्या कहने। उम्र 7 साल और गायकी ऐसी कि रोंगटे खड़े हो जाए। लेकिन, जजों की किचकिच और बच्चों के क्रिएट किए हुए मस्ती के पल देखकर मज़ा ख़त्म होने लगता है। लेकिन, फिर भी इन सारे सीरियलों को देखकर कभी-कभी मुझे ख़ुद पर शर्म आने लगती है। ऐसा लगता है कि इतनी बड़ी हो गई, पढ़ाई-लिखाई भी कर ली। लेकिन, फिर क्या। कुछ तो ऐसा किया ही नहीं मैंने कि कोई मुझे जाने। मुझमें तो ऐसी कोई प्रतिभा नहीं जिसका प्रदर्शन मैं भी कर सकूं। टीवी पर पसरे इस टेलेन्ट को देखकर लगता है कि मेरा ये जीना भी कोई जीना है... नौ साल की बच्ची स्टेज पर ऐसा भरतनाट्यम दिखाती है कि जज शेखर कपूर आंखें फाड़-फाड़कर बस देखते ही रह जाते हैं। या फिर 12 साल के अमरीक को जज कहते है कि ऐसा गाना गाओ कि जान पर बनी हो और बस यही बचने का रास्ता है। अमरीक ऐसा गाता है कि शेखर रो देते हैं और सोनाली अपनी ना को हाँ में बदल देती हैं। ये सब देखकर याद आया कि मैंने भी कभी शास्त्रीय नृत्य और संगीत सीखना शुरु किया था। चार साल सीखकर सब छोड़ दिया पढ़ाई के नाम पर। लेकिन, क्या हुआ पढ़ाई में भी तो मैं कोई तीर नहीं मार पाई। टेलेन्ट के इन शो देखकर अंदर ही अंदर खु़द पर गुस्सा आने लगता हैं। लगता है कि कितनी औसत हूँ मैं। मुझमें तो कोई हुनर ही नहीं है। तारे ज़मीन पर फ़िल्म की याद आ जाती है। लेकिन, उसके अंत में भी दिखाते है कि बच्चा चित्रकला प्रतियोगिता जीत जाता है। लेकिन, मुझे तो वो भी नहीं आती है...
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8 comments:
हाँ आपने सही कहा ...वैसे आज की पीढी बहुत ज्यादा टैलेंटेड हो गयी है...ये तो अच्छी बात है
ek saarthak post.....atisundar
हमारा जमाना दादी नानी की कहानियों तक सिमटा रहता था मगर आज कल के बच्चों के लिये कितना खुला आसमान है अब बच्चों मे अपने सपने पूरे करो ये भी तो एक talent है
सही कहा-कुछ ऐसी ही मनःस्थिति हो जाती है कि हम तो टोटल हुनरलैस हैं. :)
अच्छा आलेख.
यह सच है कि अपने बारे घमन्ड करना, अभिमान करना अच्छा नही होता पर इस तरह के विचार भी उचित नहीं। यह हीन भावना, जीवन को नीरस बनाती है।
यदि हम सच्चे और भले इन्सान हैं यह भी जीवन को जीने के लिये उसमें उत्साह भरने के लिये काफी है।
I feel all these showz are very artificial...very phoney...very taxing on delicate minds of kids. There is not a single person who is not gifted by God in some special way.U must explore ur talents.
काफी हद तक बिल्कुल सही, अब दायरा बढ़ता जा रहा है
वैसे अपने बारे में हमारे भी कुछ कुछ एसे ही विचार है। वैसे आप किसी ज्योतिषी को अपनी जन्मकुंडली क्यूं नहीं दिखा लेती:)
बढिया पोस्ट्!!!
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