इस महानगर में रहते हुए इस बात का अंदाज़ा हो गया है कि सड़क पर चलनेवालों की कोई क़ीमत नहीं है। यहाँ सड़क पर इज़्ज़त तब तक ही है जब तक कि आप किसी गाड़ी पर सवार है और अगर वो गाड़ी चार पहिए की हुई थी तो शान से आपकी गर्दन ऊंची हो जाएगी इतनी कि आसामान में नज़रें गड़ जाएगी। ये मैं इसलिए नहीं कह रही हूँ क्योंकि मैं पैदल या बस की सवारी करती हूँ। सड़क पर चलते हुए ये मैं रोज़ाना महसूस करती हूँ। मेरे मोहल्ले में यूँ तो एक ही बस स्टॉप है वो भी ऐसा कि अगर चार लोग खड़े हो जाए तो पाँचवे के लिए जगह नहीं। बस स्टॉप लगभग सड़क पर बना हुआ है ऐसे में सवारियाँ वही खड़ी रहती है। बसवाले कही भी बस रोकते है। ऐसे में सड़क पर चल रही हरेक गाड़ी बस के इंतज़ार में खड़ी सवारी पर चिल्लाती रहती है। इतना ही नहीं दूसरी सड़कों पर तो बस स्टॉप भी नहीं है और सड़क किनारे पैदल यात्रियों के लिए कोई रास्ता भी नहीं है। ऐसे में सड़क पार करने में ही पाँच से दस मिनिट तक लग जाते है और सड़क पर गाड़ियाँ दौड़ा रहे लोगों की गालियाँ और खाओ। कई बार तो मेरी सड़क पर ही लड़ाई हो जाती है मैं चिल्ला उठती हूँ कि क्या तुम लोगों के लिए जन्मों तक यही खड़ी रहूँ। सच में इस शहर में पैदल चलनेवालों के लिए कोई जगह नहीं है। सड़क पर भले ही कितना भी जाम लग जाए लेकिन, चलना किसी गाड़ी में ही चाहिए। कुछ भी ये सड़कें केवल गाड़ीवालों के लिए ही तो चौड़ी हो रही हैं। आप लाख़ ये सोचते रहे कि ट्रैफ़िक जाम करने के लिए प्रदूषण रोकने के लिए पब्लिक ट्रान्सपोर्ट का उपयोग करना चाहिए लेकिन, असलियत यही है कि चार क़दम की दूरी भी यहां गाड़ी से ही सम्मानजनक होती है। यहाँ पाँव के सहारे चलनेवालों के लिए न तो इज़्ज़त है और न ही जगह है...
5 comments:
वही कार वाले लोग सुबह मोर्निंग वाक् के लिए जाते है..सरकार जोगिंग गार्डंस में ट्रेक्स बनवाती है..सडको पर बस स्टाप नहीं..
सही कहा है -- महानगरो की त्रासदी यही है कि यहा पर सही-गलत और उचित-अनुचित की रोज परिभाषाए गढी जाती है.
बहुत अच्छा लेखन
gadi motar walo ko jab jameen par chalana pade na to halat kharab ho jaye..
badhiya prastuti..
यह बिल्कुल सही बात है
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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
इन महानगरों का एक सच सामने रख दिया आपने..यही हकीकत है..और ये स्थिति दिनों दिन खाराब ही होती जा रही है..सामयिक लेखन
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