Saturday, September 5, 2009

मोरा संईया मो से बोले ना...

पिछले कुछ दिनों से मेरा पुरानी दिल्ली में आना जाना कुछ ज़्यादा ही हो रहा है। अपने कार्यक्रम के सिलसिले में मैं दिल्ली की इन तंगों से होकर कई दिलचस्प लोगों से मिल चुकी हूँ। निचली बस्तियों में रहनेवाले बच्चों के लिए काम करनेवाली संस्थाओं में काम करनेवालों से यहाँ रहनेवाले बच्चे सभी से मिलकर हर बार एक नया अनुभव होता हैं। हालांकि कइयों को इन एनजीओ की नीयत पर शक़ होता हैं लोगों को लगता हैं कि ये लोग पैसों के चक्कर में ये सब करते हैं और सरकार से मिलनेवाला पूरा पैसा खा जाते हैं। असलियत कुछ भी हो, ये लोग कुछ भी करते हो फिर भी कुछ तो फ़ायदा इन बच्चों को मिलता ही होगा। कल मैं ऐसे ही कुछ नौजवानों से मिल जोकि बच्चों के लिए काम करते हैं। हालांकि ये उनका मुख्य काम नहीं हैं। इनमें से कुछ छात्र थे तो कुछ संगीतकार। ये सभी निचली बस्तियों में काम करनेवाले एनजीओ से जुड़े हुए हैं। ये सभी बच्चों को कुछ सिखाते है। पढना-लिखाना या फिर कोई काम काज़ से जुडी़ बात नहीं। बल्कि ये युवा बच्चों की इन निचली बस्तियों को म्यूज़िक बस्ती में तब्दील करने का काम करते हैं। ये युवा बच्चों को संगीत सिखाते हैं। हर तरह का संगीत शास्त्रीय से लेकर जेज़ तक... साथ ही साथ संगीत की धुन को पकड़ना और उस पर थिरकता भी... बच्चे इन्हें देखते से ही इन पर झूम जाते हैं। खुश होकर उनके गले लग जाते हैं। मंत्र मुग्ध से जो ये कहते हैं वो वैसा ही करते हैं। इतना ही नहीं ये इन बच्चों को वो सभी वाद्ययंत्र दिखाते हैं जो उन्होंने शायद ही कभी देखे हो। लेकिन, आखिर संगीत की इन्हें क्या ज़रूरत... इन्हें तो ज़रूरत है शिक्षा की, ऐसे काम को सीखने की जो आगे चलकर दो पैसा कमाने में मदद कर सकें। लेकिन, म्यूज़िक बस्ती से जुड़े सुहैल और फ़ेथ की सोच अलग हैं। इनका मानना हैं कि संगीत वो ज़रिया है जो इन्हें ख़ुद को समझने में मदद करता हैं। दोस्ती करना सिखाता हैं। अपनी इस ज़िंदगी से ऊपर उठकर कुछ करने की हिम्मत देता हैं। बात कुछ अलग है और कुछ अटपटी भी हैं। लेकिन, जब इन छोटे-छोटे बच्चों को - मोरो संईया मोसे बोले ना... गाते और फिर खिलखिलाकर हंसते देखा तो ये अटपटा सा आइडिया भी बढ़िया ही लगा...

5 comments:

सतीश पंचम said...

रोचक।

ravishndtv said...

मुझे भी इस बस्ती में आना है। पता बताइये और संपर्क भी। अच्छी जानकारी दी है।

अनूप शुक्ल said...

बच्चे कोई भी कार्यक्रम करते हैं अच्छा लगता है।

Dipti said...

ये जानकारी रवीशएनडीटीवी के लिए-

VOLUNTEER ORIENTATION

Date and Time: 11TH September, 3.30- 5.00 pm

Venue: E Pocket, 70-B ,Gangotri Apartments, Alaknanda, New Delhi

rashmi ravija said...

bachhon ko sangeet sikhane ka idea atpata ya nirarthak bilkul bhi nahi hai....saengeet ke maadhyam se ye apni roj ki taqleefen thodi der ko bhula sakte hain...ye koi bhi kaam karen ya yun hi samay bitaayen isme agar sangeet ka gungunaana shamil ho jaaye to wo use njoy karne lagenge...aur wah adhik rochak ho jaayega...sangeet sanvedansheelta to seekhaata hi hai..yah shiksha ka vikalp nahi hai..par unki neeras duniya me ras jaroor bhar sakta hai..