कभी पुलिया पर बैठे किचकिच करते थे... अब कम्प्यूटर पर बैठे ब्लागिंग करते हैं...
Monday, August 23, 2010
मम्मी के साथ मत देखना
शनिवार को टीवी पर एक नया शो देखा। नाम है - मीठी छुरी... कुछ टीवी की अभिनेत्रियां बैठी थी और दो पुरुष एंकर उनसे बातें कर रहे थे। शो की टैग लाइन है मम्मी के साथ मत देखना। मम्मी साथ रहती नहीं सो सोचा कि इसे भी देख लिया जाए। ये सभी महिलाएं यहां एक दूसरे का मज़ाक उड़ा रही थी। बीच-बीच में अपना भी। थोड़ी-थोड़ी देर में सौ पुरुषों से उनके बारे में राय भी ली जा रही थी। संक्षिप्त में कहा जाए तो एक महिलाओं की किटी पार्टी को दो पुरुष मिलकर होस्ट कर रहे थे और उसका प्रसारण टीवी पर हो रहा था। शो में होनेवाली बातें कुछ नई थी। कम से कम मेरे लिए जोकि एम टीवी रोडी और स्प्लिट्सविला और न जाने क्या-क्या देख चुकी हूँ। खैर, इसमें जो बात मुझे पते की लगी वो थी इन कलाकारों की इमेज। मुझे ये जानकर आश्चर्य हुआ कि उतरन में तपस्या कि माँ का किरदार निभा रही अभिनेत्री कुंवारी है। अगर मुझसे ही पूछा जाता तो मुझे लगता कि ये तो दो बच्चों की माँ होगी। लेकिन, वो तो कुंवारी है और खूब पार्टी करती हैं। ऐसी ही कई बातें कइयों के बारे में मालूम चली। यही वजह है कि सौ पुरुषों की महिलाओं के बारे में राय एकदम ग़लत साबित हो रही थी। दरअसल हम जो टीवी पर देखते हैं उसकी छाप हमारे मन पर इतनी गहरी होती है कि हम असलियत उसी को मान लेते हैं। इस शो को देखने के बाद कुछ नया नहीं लगा। आज के समय में हरेक इंसान ऐसा ही हैं कुछ खुलकर तो कुछ दबकर। लेकिन, एक बात तो है टीवी का हमारे मन पर असर आज भी उतना है जितना कि रामायण के वक़्त था। पहले लोग अरुण गोविल के पैर छूते थे और ये मानते हैं कि सुगना या गहना मिनी नहीं पहन सकती। कुछ को ये शो सामाजिक पतन लगे लेकिन, मुझे तो एक मौक़ा लगा टीवी के कलाकारों को जानने का...
Wednesday, August 18, 2010
आज़ादी की पतंग...
कुछ दिन पहले मुझे आज़ादी की एक नई कहानी पर काम करने का मौक़ा मिला। मुझ से पूछा गया कि आपको आज के वक़्त में आज़ादी से जुड़ी हुई क्या बात या काम अलग लगता है। मुझे याद आई आज़ादी के दिन दिल्ली के आसमान में उड़ती पतंग। मेरी लिए ये एकदम अलग और अनोखी बात थी। मैंने कही भी 15 अगस्त के दिन पतंग उड़ाते किसी को नहीं देखा था। मैंने इसी विषय को अपनी स्टोरी के लिए चुना और पहुंची कुछ ऐसे लोगों के पास जिनके लिए इस दिन पतंग उड़ाने का अर्थ है आज़ादी मनाना। इनका मानना है कि पतंग जिस आज़ादी से हवा में लहराती है वैसे भी हरेक मन हवा में उड़ना और हरेक बंधन से आज़ाद होना चाहता हैं। इसके बाद हम पहुंचे पुरानी दिल्ली के लालकुंआ इलाक़े में। वहां बिकती है ये पतंग। पूरी दिल्ली में यही से पतंग जाती हैं। ये पतंग का थोक बाज़ार हैं। यहां आकर और लोगों से मिलकर मालूम चलाकि कितना बड़ा हैं पतंग का व्यवसाय। इसी विषय पर बनी मेरी रिपोर्ट लोकसभा टीवी के विशेष कार्यक्रम आजादी की नई कहानी में चली हैं। अगर आप इसे देखेंगे तो अच्छा लगेगा।
लिकं है - http://www.youtube.com/watch?v=9ADJS_RBfuk
लिकं है - http://www.youtube.com/watch?v=9ADJS_RBfuk
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