कंचन भाभी का फोन आया वो रो रही थी। मम्मी पापा के क्वाटर खाली करने का दुख उन्हें इतना हुआ कि दिल्ली में आए हुए मेरे इन सात साल में पहली बार उन्होंने मुझे फोन किया। पीछे से मीशा रुआसी आवाज़ में बोले जा रही थी मम्मी बस अब मत रो... फिर उसने मुझसे बात की बोली दादी तो छोड़कर चली गई और बाबा को भी साथ में ले गई। फिर उसने अपना सुर बदला और बोली अब ज़रा फूफाजी से बात करवा दो, एक पल को मैं सोचने लगी ये कौन है
? फिर याद आया वो भुवन से बात करना चाह रही है। भुवन था नहीं तो मैंने उससे वादा किया कि कल सुबह मैं बात करवा दूंगी। अगले दिन फोन पर भुवन से बात करवाई। भुवन के चेहरे पर भाव जैसे पल-पल बदल रहे थे। पहले तो इतनी छोटी बच्ची की आवाज़ नहीं समझ पा रहा था फिर फूफाजी बनकर वो अपनी ज़िंदगी में पहली बार किसी से बात कर रहा था। बात खत्म होने पर उसने ऐसे राहत की सांस ली थी जैसे किसी टेलिफोनिक इन्टरव्यू के बाद कोई लेता है। हालांकि भुवन ने अभी असल में ससुरालवाले रिश्तों का मज़ा लिया नहीं है फिर भी जीजाजी, दामादजी, फूफाजी सुनकर और उस पैरामीटर में घुसकर बर्ताव करने में उसे फिलहाल मुश्किल हो रही है। हर बात और हर परिस्थिति में आसानी से ढल जानेवाले भुवन को ऐसा देख मुझे मेरी हालत पर कुछ तसल्ली होती है। शादी के बाद आंटी को माँ और अंकल को पापा बोलने में मेरी ज़बान आज भी धोखा दे जाती है। भाभी संबोधन सुनकर तो मैं कई बार जवाब ही नहीं देती हूँ, मुझे लगता है किसी और से ही बात हो रही है। एक तो प्रणाम करना और सुनना ही मेरे लिए सबसे अजीब है। खासकर जब कोई मुझे करता है, मैं जवाब ही नहीं दे पाती हूँ। अपने घर में तो किसी से बात करो सीधे क्या हाल है, क्या चल रहा है... ना कोई नमस्कार ना कोई प्रणाम। कई बार ऐसा लगता है कि नए रिश्तों में बंध तो गई हूँ लेकिन, उन्हें निभाना नहीं सीखा है। ससुराल में ही कई बार में आराम से बैठी रह जाती हूँ आदर्श बहू की तरह काम कैसे किया जाता है मुझे मालूम ही नहीं चलता है। मामी के क्या फर्ज है, भाभी कैसे बात करती है, बहू को कब क्या करना है... हर मामले में मैं गड़बड़ कर जाती हूँ। शादी के ग्यारह महीने होने जा रहे है अब तक पत्नी बनने के स्टैन्डर्ड नियम क्या है वो ही मैंने पता नहीं किए। मैं बस अपने ही तरीके से हर रिश्ते को निभाए जा रही हूँ। आराम से भुवन के ताऊजी के पास बैठकर बतियाती हूँ और मुझे मामी कहनेवाले बच्चों की गैंग के साथ मस्ती मारती हूँ। शादी करने से दो लोगों का रिश्ता भले ही कुछ ज्यादा न बदलता हो लेकिन, उससे जुड़े इन नए रिश्तों से जुड़ने का मज़ा ही कुछ और है। मैं अपने हर नए रिश्ते को पूरे दिल से जीने की कोशिश कर रही हूँ, बाक़ि भले ही भुवन को पीछे से सब संभालना पड़ जाए...
4 comments:
बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
लिंक आपका है यहीं, मगर आपको खोजना पड़ेगा!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
शुरू में समझ ही नहीं आता वैसे कई बार बाद में भी नहीं. :)
घुघूतीबासूती
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