कभी पुलिया पर बैठे किचकिच करते थे... अब कम्प्यूटर पर बैठे ब्लागिंग करते हैं...
Friday, August 21, 2009
बच्चों की बड़े होने में मदद करें...
क्या आपके बच्चे या छोटे-भाई बहन ने आपसे कभी किसी तरह के घरेलू शोषण की शिकायत की है? हो सकता है कि कभी की हो लेकिन, क्या आपने आपने बच्चे की इस बात को गंभीरता से लिया? उस इंसान से क्या कभी कोई बात की? असल में हमारा समाज ख़ुद को एकदम साफ सुथरा बनाए रखना चाहता है जोकि अच्छी बात है। लेकिन, इसके लिए समाज उपने अंदर की गंदगी को साफ नहीं करता है, बल्कि उसे चादर के नीचे ढ़क देते है। एक औसत भारतीय घर में ऐसी घटनाएं होती ही रहती है। अगर इन घटनाओं का सही आंकलन हो तो संभव है आंकड़ों और इन घटनाओं के दुष्प्रभावों को देखकर आप चौंक जाए। ये मुद्दा मैं इसलिए उठा रही हूँ क्योंकि कल ही मैंने एक कॉमिक पढ़ी। इसमें कहानी तो बच्चों की थी लेकिन, इसे पढ़ना हरेक इंसान के लिए ज़रूरी है। इसकी कहानी एक स्कूल के कुछ बच्चों की है ख़ासकर लड़कियों की जिनका उनके ही स्कूल का एक शिक्षक यौनशोषण करता है। डर के मारे बच्चियों किसी को कुछ नहीं बता पाती हैं लेकिन, इसका असर उनके व्यवहार और पढ़ाई पर साफ नज़र आता है। क्योंकि ये एक काल्पनिक कहानी है इसलिए किसी तरह से बच्चियों के माता-पिता को बात मालूम चल जाती हैं और उनके माता-पिता उन पर विश्वास करके उस इंसान के ख़िलाफ कार्रवाई भी करते है। जैसा कि हमेशा होता है हैप्पी एण्डिंग। लेकिन, इस अंत से मैं खुश नहीं हूँ। क्योंकि ये असलियत नहीं है। असलितय तो ये है कि सौ में से निन्यान्वे बार बच्चे माता-पिता तक ये बात लेकर ही नहीं जाते हैं। वजह सिर्फ़ इतनी कि हमारे घरों में आज भी अभिभावकों और बच्चों के बीच एक दूरी है। कई ऐसी बातें है जिनके बारे में हम बात नहीं कर सकते, कई बातें हैं जो माता-पिता हमसे नहीं कहते। सबकुछ रहता है पर्दे के पीछे। दूसरी वजह जोकि बच्चों को इन बातों की शिकायत से रोकती है वो है माता-पिता का अविश्वास और किसी तरह की कोई कार्रवाई न करना। कई बार माता-पिता अपने ही बच्चों की बातों को गंभीरता से नहीं लेते हैं और अगर ऐसी कोई बात हो तो उन्हें चुप करके बात को दबा देते है। अगर आप एक अभिभावक है तो ध्यान दे अपने बच्चे के दोस्तों पर, अपने रिश्तेदारों पर, उनके व्यवहार में अचानक आए किसी भी बदलाव पर। बच्चों के मामले में किसी पर भी यक़ीन न करें बले ही आपका रिश्तेदार या दोस्त हो। बच्चे कहाँ जाते हैं, कब आते हैं, किससे मिलते हैं, इन सब पर नज़र रखें। बच्चों से उनके शारीरिक बदलावों और यौन क्रियाओं के बारे में उनके मुताबिक़ बात करें।
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4 comments:
Sahi salah.
Think Scientific Act Scientific
सही में ऐसी घटनाएँ कम ही सामने आ पति है और बच्चे अन्दर ही अन्दर घुटते रहते है...
बच्चों से और अपने आसपास संवाद तो होने ही चाहिये।
सही बात!
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