तू तो दिल्ली में रहती हैं, तुझे क्या परेशानी है। यार काश मैं भी दिल्ली में रहती...
ऐसा कहते ही उनसे एक आह भरी और आज उस पर जो बीती वो मुझे सुना दी। मैं बात कर रही हूँ, मेरी उस दोस्त की जिसने अपनी ज़िंदगी में कुछ भी अपने मन से नहीं किया है। हरेक काम वो अपने माता-पिता की मर्ज़ी से करती आई हैं। उसे इस बात का बहुत कोफ़्त है कि उसके माता-पिता को उस पर बिल्कुल यक़ीन नहीं है। ये सच भी है कि स्कूल या कॉलेज के दिनों में वो कभी हमारे साथ भी कही घूमने नहीं जाती थी। उसके माता-पिता उसे कभी नहीं जाने देते हैं। इसके पीछे शायद ये भावना हो कि उन्हें बेटी पर यक़ीन न हो लेकिन, मुझे ऐसा लगता है कि शायद उन्हें इस दुनिया पर यक़ीन नहीं हैं। खैर, माता-पिता और बच्चों के बीच के मनमुटाव नअ नहीं लेकिन, जो नया है वो ये कि - तू तो दिल्ली में रहती हैं, तुझे क्या परेशानी है। यार काश मैं भी दिल्ली में रहती... मैं तब से इस बात का मतलब खोज रही हूँ...
3 comments:
दूर के ढोल सुहावने होते है.
अच्छा लगा पढकर
दिल्ली में रहने का मतलब है आज़ादी, ज़िम्मेदारी और घर से दूरी!!
हाँ, सिर्फ ढोल दूर से चाहे जितने भी सुहावने लगें.. कदम तो तभी थिरकते हैं जब ताल सामने छिडे.. एक दम दिल के पास
ACHA LAGA PADH KAR AAPKO .... SACH KAHA DILLI AA KAR KOI DEKHE RAHNA ITNA AASAAN NAHI HAI ...
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