Tuesday, October 27, 2009

दोहरे मापदंड...


आज सुबह के अखबार में ख़बर पढ़ी कि कैसे एक उत्तर-पूर्वी लड़की की एक लड़के ने हत्या कर दी। हर अख़बार ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वो लड़का एक सभ्रांत परिवार का था और ख़ुद भी बहुत पढ़ा लिखा था। आईआईटी से पीएचडी कर रहे इस 34 वर्षीय लड़के की इसी पढ़ाई की दुहाई दी जा रही थी कि कैसे पढ़ाई तक एक मनुष्य को सभ्य नहीं बना सकती है। ख़बर विचलित करनेवाली है। ये सच है कि हमारी सोच यही है कि एक अच्छे परिवार के पढ़े लिखे युवा ग़लत हरकतें कम करते हैं। जबकि शायद ऐसा नहीं है क्योंकि सभ्रांत परिवार और पढ़ाई सभ्य होना कुछ हद तक ही सिखाती है। ये बातें इंसान व्यवहारिकता से आती है। घर में माता-पिता क्या सिखा रहे हैं, आपको किस दह तक आज़ादी मिल रही हैं और आपके दोस्त कैसे हैं। ये सब पढ़ाई लिखाई से भी ज़्यादा मायने रखता है। खैर, सुबह से इन्हीं सब मुद्दों पर बहस के साथ-साथ लड़की का उत्तर-पूर्व का होना भी बहस का मुद्दा था। अख़बार में भी ये लिखा था कि इन क्षेत्र की रहनेवाली लड़कियों का दोस्ताना स्वभाव और पहनावा यहां के लोगों के लिए अजूबा होता है। पुलिस तक इन्हें अंग्रेज़ी मैडम कहते हैं। इन ढेर सारी बातों के बीच कई बातें हुई लेकिन, जो मन को चुभी वो बात थी मेरे एक सहयोगी की। उसके मुताबिक़ लड़कियों को पहनावे और स्वभाव को मर्यादा में रखना चाहिए इनसे ही लड़के उत्तेजित होते हैं और ऐसी हरक़तें करते हैं। सिर्फ़ इस एक लाइन ने लड़की को भी अपराधी बना दिया। दोहरे मापदंडों का हमारे समाज में कोई अंत नहीं...

4 comments:

M VERMA said...

बिलकुल सही कहा आपने. दोहरे मापदंड वाला यह समाज जिन्दा रहने पर भी कुछ कहेगा और इतना बेरहम है कि मरने के बाद भी ---

दिगम्बर नासवा said...

शर्म की बात है .........

ghughutibasuti said...

हर अपराध का उत्तरदायित्व पीड़ित पर होता है, विशेषकर यदि वह पीड़िता हो। पीड़ित ने गहने क्यों पहने, देर रात को बाहर क्यों निकली, सुनसान सड़क पर क्यों गई, इतने बेहूदा लोगों के क्यों मुँह लगी, इतने बेहूदा लोगों को उनके बेहूदापन का अहसास क्यों करवाया, घर से बाहर क्यों गई, घर में अकेली क्यों थी, अविवाहित क्यों थी, अकेली क्यों रहती थी आदि आदि। मैं तो इससे भी आगे बढ़कर पूछती हूँ कि वह इस संसार में आई ही क्या करने थी़? आई तो फिर भुगतो।
दीप्ति, शक्तिहीन को ही सब दोष देते हैं। कोशिश यही होनी चाहिए कि अपनी बेटियों को थोड़ा शक्तिशाली बनाया जाए और अपने बेटों को थोड़ा संयम सिखाया जाए।
घुघूती बासूती

रंजना said...

Sahi kaha aapne...kitaben mastishk ko smriddhi bhale de sakti hai,par sanskaar to pariwaar aur parivesh se hi milte hain....