Saturday, December 12, 2009

काली राजकुमारी...

बात कुछ पुरानी है। मेरे मामा की बेटी गर्भवती थी। एक दिन मेरे पापा ने सपना देखा कि वो अस्पताल में हैं और सभी लोग बच्चे के जन्म की खुशी मना रहे हैं। पापा ने ये बात जब मेरी मामी को बताई तो मामी का सवाल था- बच्चा दामादजी जैसा ही लग रहा था ना। ये सवाल इसलिए क्योंकि वो ज़्यादा सुन्दर और गोरे है। ऐसे ही मेरी नानी एक बार हमारे साथ मिस इंडिया प्रतियोगिता देख रही थी। वो उसे देख बहुत मायूस हुई उनका कहना था कि इसमें से एक भी लड़की गोरी नहीं हैं। सभी सांवली या दबे रंगवाली ही हैं। ये है हमारे इस समाज की सोच। पहले तो ये गोरा रंग लड़कियों के लिए सुन्दरता का पैमाना था लेकिन, आज तो लड़के भी टॉल, डार्क और हैन्डसम की जगह फ़ेयर और हैन्डसम होना चाहते हैं। मेरे घर के पास रहनेवाली 5 साल की बच्ची को भी ये बात मालूम है कि सांवली है और उसकी 2 साल की बहन गोरी। वो कई बार ये बोल चुकी हैं कि मैं तो गंदी लगती हूँ। ये है हमारा समाज। खैर, कई सालों तक मैं भी इसी काम्प्लैक्स में जी चुकी हूँ। मेरे घर में मेरा रंग ही दबा हुआ है बाक़ी सब गोरे है खा़सकर पापा। मैं कई बार उनसे इस बात पर लड़ाई भी कर चुकी हूँ कि जब मैं आप सी दिखाई देती हूँ तो आप सी गोरी क्यों नहीं हूँ। लेकिन, आज मैं इस बारे नहीं सोचती हूँ। गोरेपन का पैमाना तय करनेवाली सिनेमा भी अब इससे ऊपर उठ रही हैं और परिवर्तन की इसी बयार में शामिल हुआ है- वॉल्ट डिज़नी। अपनी नई फ़िल्म दि प्रिन्सेस एण्ड दि फ़्राग के ज़रिए पहली बार एक अश्वेत राजकुमारी दर्शकों के सामने होगी। ये फ़िल्म मुझे इसलिए दिलचस्प लग रही है क्योंकि इसे बच्चे देखेंगे। बच्चों का मन सबसे कोमल होता हैं। इस उम्र में जो बात बैठ गई वो हमेशा बनी रहती हैं। उसे दूर करना बहुत मुश्किल होता हैं। ऐसे में अगर आज बच्चा ये देखेगा कि सुन्दरता का पैमाना रंग नहीं तो शायद ये एक अच्छी पहल साबित हो...
इस फ़िल्म का प्रोमो आप यहाँ देख सकते हैं...

4 comments:

Unknown said...

achha laga........

कुश said...

वाकई बच्चो के मन में बात बैठ जाए तो क्या कहना..

बाय द वे.. इसे पढ़कर मुझे लगा कि अपनी एक पुरानी पोस्ट का अंश यहाँ शेयर किया जाए..

वो कार से बाहर निकल गया.. चारो तरफ भीड़ ही भीड़ थी.. उसने ऊपर देखा जगह जगह पर पोस्टर लगे थे.. बड़े बड़े होर्डिंग्स.. एक बड़ा सा एड लगा था "डार्क एंड लवली" सिर्फ छ हफ्तों में आपकी त्वचा को सांवला बनाये.. कितनी ही लड़कियों का ख्वाब होगा सांवला होना.. गोरे होने की वजह से उनकी शादिया नहीं हो रही थी.. वो पलटा, अगला विज्ञापन था बालो में डैंड्रफ उगाने का.. मोटा होने के इश्तेहार.. बाल सफेद करने का.. पर उसे इन सब की जरुरत नहीं थी.. वो इस जगह से भाग जाना चाहता था..उसने कार की खिड़की में देखा बारिश अभी तक जारी थी.. वो सामने जाकर मेट्रो पकड़ना चाहता था.. पर इस ट्रैफिक की वजह से सड़क पार नहीं कर पा रहा था..

उम्मतें said...

'मेरे मामा की बेटी' की जगह 'मेरी ममेरी बहन' शायद ठीक लगता ?
सुन्दरता को लेकर हमारा समाज काफी भ्रमित है सच कहूं तो सुन्दरता किसी वर्ण विशेष पर आश्रित नहीं है और ना ही किसी विशिष्ट ऊंचाई पर !
मैंने एक से बढ़कर एक कृष्ण वर्ण सुंदरियां देखी हैं और बौनी भी ! कुछ इसी तरह से बदशक्ल गोरे , लम्बे लोग भी !
निवेदन सिर्फ इतना है की रंग / कद वगैरह वगैरह की विशिष्ट स्थिति सुन्दरता की गारंटी नहीं है ! यह सब केवल प्रचलित भ्रम हैं !

KK Mishra of Manhan said...

भैया पुलिया वाली बात ने मुझे बिगत स्मृतियों में जाने को मजबूर कर दिया, पुलिया पर बैठ कर गन्ना खाना मुझे भी याद है