Friday, January 22, 2010

आसपास की कोई ख़बर नहीं...

मेरी एक सहकर्मी ने कुछ ही दिनों पहले शादी हुई है। वो क्रिश्चन है। उसने शादी एक बिहारी कायस्थ से की है। कल यूँ ही मेरी उससे बात हुई। मैंने पूछा कि ससुराल में निभाना मुश्किल लग रहा होगा। उसने हंसकर जवाब दिया बिल्कुल नहीं। इसके बाद उसने अपने परिवार का इतिहास बताया कि उसके परिवार में सभी ने अपनी पसंद से शादी की हैं। उसके परिवार में हर जाति और धर्म के सदस्य हैं। ये बात सुनकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा। उसने बताया कि कैसे उसकी क्रिश्चन माँ धन तेरस पर बर्तन खरीदती हैं या फिर वो कैसे अपनी बंगाली मौसी के ससुराल में दुर्गा पूजा के लिए जाते हैं। ज़रा सोचिए कि एक ऐसा परिवार जहाँ आपको साल की पहली तारीख से लेकर आखिरी तक त्यौहारों को मनाने का मौक़ा मिलें। जहाँ सिर्फ़ होली या दीवाली ही नहीं बल्कि ईद और क्रिसमस का भी इतंज़ार रहे। उसके परिवार के बारे में सुनने के बाद से ही मैं यही सोच रही हूँ कि वो कितनी भाग्यशाली है कि एक ही जन्म में उसे इतने सारे धर्मों, त्यौहारों और रीति-रिवाज़ों को मनाने का मौक़ा मिल गया। अगर मैं अपने ही घर की बात करूं तो मेरे घर में भी त्यौहार तो कई मनते हैं लेकिन, सिर्फ़ वही जिनसे हमारी धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हैं। इसके अलावा और कोई त्यौहार हमने कभी नहीं मनाया। इतना ही नहीं कभी किसी दूसरे धर्म के दोस्त के साथ उसके त्यौहार भी नहीं मनाए। सच तो ये है कि कभी दिमाग में ही नहीं आया कि गुरुपर्व के दिन किसी गुरुद्वारे में जाया या फिर किसी रविवार को चर्च। ऐसा न करने का अफसोस इसलिए क्योंकि अपने ही देश, अपनी ही संस्कृति से जुड़ी कितनी ही बातें मैं आजतक नहीं जान पाई हूँ। अब मैं जब भी मेरी सहकर्मी को देखती हूँ मुझे बहुत अच्छा लगता है...

3 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर पोस्ट..... पता नहीं कैसे मुझसे आपके आर्टिकल्स छूट जाते हैं.....

पर अब ऐसा नहीं होगा.... फैवरिट में ऐड कर लिया है अब.....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर पोस्ट..... पता नहीं कैसे मुझसे आपके आर्टिकल्स छूट जाते हैं.....

पर अब ऐसा नहीं होगा.... फैवरिट में ऐड कर लिया है अब.....

अपूर्व said...

यह परिवार भारत की शाश्वत समभाव साझा संस्कृति का प्रतीक है..जहाँ हर आस्था मे सकारात्मकता और खुशी तलाशी जा नही है..नकारात्मकता नही