Tuesday, July 13, 2010

शहरी गाय

घर में जब भी खाना बनता है एक हिस्सा गाय और एक हिस्सा कुत्ते का ज़रूर निकलता हैं। अगर श्राद्ध का समय है तो कौवे के लिए भी। बचपन से ही घर के सामने टहल रही गाय को आजा-आजा गाय-गाय करके रोका है और डर-डरकर रोटी खिलाई हैं। एक बार ऐसी दौड़ लगाई थी कि पैर का नाखून ही टूट गया था। खैर, ये बातें किसी महानगर की नहीं है बल्कि छोटे शहरों की है। दिल्ली में तो गाय के दर्शन ही दुर्लभ है। और, किसी पालतू के पास तक आप पहुंच भी जाए तो उसका मालिक यूं घूर के देखता हैं जैसे रोटी ना कोई जहर हो आपके हाथ में जो आप गाय को खिला रहे हैं। दिल्ली आने के कुछ ही दिनों बाद मम्मी ने कहा था कि हर सोमवार को मंदिर में दिया लगाना और मंगलवार को गाय को रोटी खिलाना। न तो मैं मंदिर जा पाती थी और न ही मुझे मंगलवार को गाय मिल पाती थी। ऑफिस के आने के बाद गाय को ढ़ूढने में हालत खराब हो जाती थी। मम्मी के कई अजीब और छोटे शहरों की सोचवाले सुझावों के बाद अंततः मैंने ये काम बंद कर दिया। शहर में यूं ही कही कोई गाय किसी कचरे के डब्बे के पास खड़ी मिल जाती है। उसके मुंह में कचरा भरा होता हैं। ऐसे में जहां मेरे जैसे लोग चाहकर भी गाय को रोटी नहीं खिला पाते हैं ऐसे में गाय को कचरा खाते देख दुख होता था। इस सबके बीच मुझे गौ-ग्रास सेवा के बारे में पता चला। ये दिल्ली के कुछ इलाकों में चल रही है। इसमें कुछ साइकलों पर टीन के डब्बे लिए लोग सुबह-सुबह कॉलोनी की गलियों में घूमते हैं। घंटी बजाते हैं और लोग अपनी घर का बासी बचा खाना इन डब्बों में डाल जाते हैं। ये खाना लगभग तीन-चार घंटे तक इकठ्ठा किया जाता हैं इसके बाद इस खाने को दिल्ली की किसी भी गौ शाला में भेज दिया जाता हैं। ऐसा करने के पीछे वजह है गायों का सड़क के किनारे रखे कचरे डब्बों से खाना नहीं खाना। दिल्ली में अधिकतर गौ शाला वाले अपनी गायों को यूं ही सड़क पर छोड़ जाते हैं और कचरा खानेवाली इन्हीं गायों से निकला दूध फिर लोग पीते हैं। ऐसे में इस दूध की पौष्टिकता का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं। ऐसे में इस सेवा के ज़रिए दिल्ली के कुछ मुठ्ठीभर इलाकों में ही सही लेकिन, कुछ जगह तो कम से कम गायों को कुछ ढ़ंग का खाना नसीब हो रहा हैं।

2 comments:

डॉ .अनुराग said...

अब गलियों- कालोनियों के बाहर गेट लग गए है.गायो की एंट्री बंद....ओर गायो को उनके मालिक ही ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन लगा रहे है .....परोपकार के लिए फुर्सत चाहिए ..भगवान् के वास्ते भी एक मंगलवार फिक्स है जी....

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

eएक अछूता विषय उठाया है आपने और वो भी बड़ी ही खूबसूरती से....अच्छा लिखा है आपने....!