मैं आजकल कुछ परेशान हूँ। मुफ़्त में मिल रही सुविधाओं से। आज सुबह ही गुगल की नई नेटवर्किंग साइट बज़्ज़ के बारे में सुना तो लगाकि अब लोग इसमें भी जुटेंगे। लेकिन, आज इस बज़्ज़ को जब मैंने मेरे जीमेल खाते में देखा तो कुछ हैंरान हुई। फिर जब उसे खोला तो मालूम चलाकि मैं भी इसकी सदस्य हूँ और लगभग पचास लोगों को फ़ॉलो भी कर रही हूँ। मैं हैरान हो गई। मुझे लगा कि ये क्या हुआ। मुफ़्त में खाते खोलना मुझे ग़लत लगा। अरे, मुझसे तो पूछा होता। खैर, ये बात सिर्फ़ यही तक सीमित कहाँ। फेसबुक पर भी ऐसा ही कुछ है। झट से आपके खेल के स्कोर दूसरे को चैलेन्ज करने पहुंच जाते हैं और पता नहीं किस-किस को खेलने के लिए उकसा आते हैं। ऑर्कुट में एकदिन अचानक से ही आपको मालूम चलता हैं कि आप के पास एक चैट लिस्ट भी है। माना कि ये सभी मुफ़्त में हमें कई सुविधाएं दे रही हैं लेकिन, इसका अर्थ ये तो नहीं हुआ कि हमसे बिना पूछे ही ये हमारे खाते संचालित करने लगे। इस तरह के मामलों में मैं कुछ कच्ची हूँ। सोशल वेब साइट की सदस्य होने के बावजूद भी बेहद अनसोशल हूँ। मेरी ही तरह और भी कई लोग हैं जोकि इन सामाजिक सरोकारवाली तक़नीक़ का असल चेहरा देख नहीं पाते हैं। मुझे रोज़ाना चार से पाँच मेल आते हैं कि फलां इंसान आपको ढ़िंमका साइट पर देखना चाहता हैं तो फलां तलां पर... इन मेल्स को डिलीट करने पर दूसरे दिन रिमान्डर भी आता हैं और फिर एक धमकी कि, देख लो नहीं तो आप एक्सपायर हो जाएगे (मतलब मरने से नहीं बल्कि खाते के बंद होने से है। ये वो खाता है जो आपने नहीं आपके एवज में उस साइट ने स्वयम् ही खोल दिया है।)
मैं इस इन्टरनेट के मेरी निजी ज़िंदगी (या फिर ये कहे कि मेरे निजी मेल अकाउन्ट) में दखल से बेहद परेशान हूँ। कई बार तो इन साइट्स ने मुझे के पीछे लगा दिया जिनसे मेरी लड़ाई तक हो चुकी है। या फिर ऐसे को मेरी तरफ से जन्मदिन की बधाई चली गई जिससे अपनी मर्ज़ी से बात बंद की थी। ये अंतरजाल की जबरिया दोस्ती मेरे लिए एक बहुत ही बड़ी उलझन हैं और साथ ही लोगों का इसके प्रति उत्साह दूसरी तरह की परेशानी का सबब...
4 comments:
इससे बचना है तो बस कहीं इधर उधर की लिंक पर क्लिक ना करें और ज़्यादा जगह अपनी ईमेल आई. डी. रजिस्टर ना करें..धन्यवाद
महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई!!!
आपके जैसा हीं हाल सभी का है.
कब कहाँ से न्योता आ जाये दोस्ती का ,दुश्मनी का कहा नहीं जा सकता ..
छुप के रहिये तो गैर सामाजिक का तगमा लग जायेगा और खुल कर सामने आइये तो आपके अंतर मन का नक्सा भी लोग चुराना शुरू कर देंगे ..
आपके इस पोस्ट से मै पूरी तरह सहमत हूँ .
मैं भी इस तरह के मेल से परेशान हूं। रोज ेक दो आ ही जाते हैं। सोशल नेटवर्किंग तो असोशल हुआ जा रहा है।
हाय राम क्या जमाना आ गया है
हवरन समाजीकरण
http://sharatkenaareecharitra.blogspot.com/
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