Thursday, May 6, 2010

मिस्टर एण्ड मिसेस शर्मा इलाहबादवाले

सब टीवी वैसे तो सबका प्रिय चैनल बन चुका हैं। ख़ासकर मेरी तरह रहनेवाले अकेले रहनेवाले लोगों का। दिनभर की थकान के बाद टीवी पर भी किसी तरह की लड़ाई देखने का मन मेरा तो नहीं होता हैं। ऐसे में लापतागंज से लेकर सजन रे झूठ मत बोलो ये सारे कार्यक्रम मैं देखती हूँ। लेकिन, आजकल इंतज़ार है एक नए धारावाहिक का। मिस्टर एण्ड मिसेस शर्मा इलाहबादवाले। धारावाहिक का नाम और राजेश जैसे हास्य में पारंगत कलाकार को देखने से तो यही लग रहा हैं कि ये एक बेहतरीन धारावाहिक होगा। छोटे से शहर से मुबंई आए इस आत्ममुग्ध जोड़े के किस्सों का इंतज़ार है...

Monday, May 3, 2010

आखिर हम हैं कैसे...

हम रोज़ाना कुछ न कुछ नया सीखते हैं। घर में रहते हुए भी और घर से निकलकर भी। ख़ासकर अगर हम अकेले किसी सफ़र पर हो। ऐसे समय में हम इतने अकेले होते हैं कि चुपचाप दूसरों को देखते रहते हैं और उनकी हरक़तों को पढ़ते रहते हैं। आज भी ऐसा ही हुआ। मैट्रो के सफ़र के दौरान दो बार मुझे ऐसे बुज़ुर्ग दिखे जो टीनएजर बच्चों को बातें सिखाने की कोशिश कर रहे थे। बुज़ुर्ग पूरे मन से बच्चों को नसीहतें दे रहे थे कि पहले उतरनेवालों को जगह दो, मैट्रो में मस्ती मत करो और भी बहुत कुछ। वही दूसरी ओर वो युवा उनकी बातें अनमने ढंग से इधर उधर करके सुन रहे थे। बुज़ुर्ग के जाते ही वो पीछे से बोलते हैं क्या यार बकवास करते रहते हैं। दरअसल में हम जब बड़े हो रहे होते हैं तो हमें बड़ों की नसीहतें बहुत भारी और झिलाऊ लगती हैं। हम पहले तो उन्हें सुनना नहीं चाहते और सुन भी लेते हैं तो उसे मानने से कतराते हैं। वही जब हम बड़े हो जाते हैं तो अपनी ही इस बात को भूलकर सलाहें देना शुरु कर देते हैं। मैं न तो टीनएजर हूँ और नहीं इतनी बड़ी कि मेरे कोई बहुत बड़े अनुभव हो। मैं कही बीच में लटकी हुई हूँ। युवाओं की उस चीढ़ को भी समझती हूँ और बुज़ुर्गों की उस सलाह के मायने को भी। लेकिन, फिर भी मैं तब से यही सोच रही हूँ कि आखिर हम हैं कैसे...