कभी पुलिया पर बैठे किचकिच करते थे... अब कम्प्यूटर पर बैठे ब्लागिंग करते हैं...
Friday, September 17, 2010
सुगंध के साथ शरीर की बिक्री...
कुछ साल पहले एक विज्ञापन टीवी पर आया करता था। विज्ञापन में एक लड़का बांसुरी बजाकर शहर के सारे चूहों को समुद्र में बहा आता है। इस काम के पैसे ना मिलने पर वो बांसुरी छोड़ एक डियोड्रन्ट लगाता है जिसकी खूशबु के पीछे सारी लड़कियां चल पड़ती है। विज्ञापन विदेशी कंपनी का था और उसमें कलाकार भी सारे विदेशी ही थे। वो उस कंपनी का भारत में ऐसा पहला विज्ञापन था। विज्ञापन पर सभी की नज़रें पड़ी और सभी को बेहद बोल्ड लगा। युवाओं के मन में इस विज्ञापन ने अप्रत्यक्ष रूप से एक कामना भी जगाई। खैर, इसके बाद से लेकर अब तक ऐसे डियोड्रन्ट के कई विज्ञापन टीवी पर आने लगे हैं। शुरुआत जिस अप्रत्यक्ष रूप से हुई थी वो आज प्रत्यक्ष हो चुकी हैं। एक महिला का अपनी ही सुहागरात के दिन किसी ओर पुरुष पर आसक्त हो जाना केवल गंध के पीछे, या फिर एक माँ का बच्चों के साथ खेलते-खेलते एक नौजवान के कमरे में घुसकर कुंडी लगा लेना वो भी केवल उस गंध के चलते और भी कई ऐसे ही विज्ञापन आजकल टीवी पर हरेक ब्रेक में आप देख सकते हैं। ऐसे विज्ञापन उस उत्पाद के लिए किसी तरह की कामना जगाते हैं इस बात से बड़ी बात है, उस विज्ञापन में जागनेवाली कामनाएं। केवल एक गंध के पीछे क्या इंसान का मन और दिमाग इस तरह से घूम सकता है कि वो ये ही भूल जाए कि उसकी इच्छा और सच्चाई क्या है। ऐसे विज्ञापनों में शारीरिक आकर्षण को इस हद तक लेकर जाया जाता है कि उसके आगे पूरी दुनिया सामनेवाले को छोटी लगे। उत्तेजना को बढ़ानेवाले उत्पादों के विज्ञापन हमेशा से ही टीवी पर आते है और आज के वक़्त में बहुत खुलकर भी आते हैं लेकिन, उसके साथ ये बात सर्वविदित है कि वो इसी काम के लिए हैं। लेकिन, एक डियोड्रन्ट को उत्तेजना से जोड़ना और इस हद तक जोड़ना उत्पाद को बेचने के लिए इस्तेमाल की गई एक बेहुदी सोच लगती है। ऐसे उत्पाद विशुद्ध रुप से शरीर की दुर्गन्ध को छुपाने के लिए होते हैं। माना कि शरीर की एक विशेष गंध आकर्षित करती है लेकिन, वो गंध शरीर की होती है नहीं ऐसे उत्पादों की। ऐसे में केवल उत्पाद को बेचने के लिए शरीर की गंध को बेचने और इस तरह से मानवीय संबंधों और भावनाओं को भुनाने की सोच खतरनाक हैं। शायद विज्ञापन को बनानेवाले इस बात से अपना मुंह मोड़ लेना चाहते है कि वो एक समाज में रहते है। उससे भी बड़ी बात एक ऐसे समाज में जहाँ बड़े हो रहे बच्चों को उनके बड़े शरीर में आते बदलावों और सेक्स जैसी बातों के बारे में कोई जानकारी नहीं देते हैं। ऐसे में वो इन विज्ञापनों से क्या सीख लेंगे शायद उन्हें इससे मतलब नहीं।
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3 comments:
इस बार मैं फिर सुगंध से ही खीचा चला आया .... शकुनी के बिना क्या कह पाउँगा.....
विज्ञापन की दुनिया की कुटिलता पर आपने करारा प्रहार किया .
धन्यवाद !
मैंने सुना है कि दिल्ली में एक युवक ने एक जानी-मानी डियोडोरेंट कंपनी पर केस कर दिया था कि सालों तक उसके उत्पादों पर पैसा बर्बाद करने के बाद भी एक भी लड़की ने उसे भाव नहीं दिया. पता नहीं यह बात कितनी सच है. इन उत्पादों को लगाने के पीछे आजकल नहाने से बचने का आलस भी है. अब ऐसे उत्पादों के विज्ञापन आते हैं जो भीषण गर्मी में 48 घंटों तक पसीने के दाग और दुर्गन्ध से बचाने का दावा करते हैं. और मैं आश्चर्य करता हूँ कि 48 घंटों तक इन दिक्कतों से बचने के लिए लोग मेरी तरह चार बार क्यों नहीं नहा लेते?
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