कभी पुलिया पर बैठे किचकिच करते थे... अब कम्प्यूटर पर बैठे ब्लागिंग करते हैं...
Monday, April 18, 2011
समझ ज़रूरी है...
स्कूली दिनों को हम लोग मौज मस्ती के लिए ही ज़्यादातर याद करते हैं। पढ़ाई भी याद आती है तो किसी शिक्षक की बातों से या किसी शरारत से। ऐसा शायद ही किसी के साथ होता हो कि वो स्कूल को वहाँ की बेहतरीन पढ़ाई के लिए याद करता हो या ये याद कर रहा हो कि उसके स्कूल में जो उसे पढ़ाया वो आज काम आ गया। स्कूल एक ऐसी जगह बन गई है जहाँ जाना आपके पढ़े लिखे होने का सबूत है। लेकिन, स्कूल में मिलनेवाली शिक्षा इतनी ज़्यादा एक ढर्रेवाली और निरस होती है कि उसे पढ़ने के बाद न तो वो हमें वो आनेवाले समय के लिए बहुत लाभदायक लगती है और न ही एक सुखद याद की तरह हमारे साथ रहती है। शिक्षा पद्धति को रोचक बनाने के लिए आज के वक़्त में बहुत से काम हो रहे है। ख़ासकर गणित और विज्ञान जैसे विषयों को लेकर। यही ऐसे दो विषय रहे हैं जिनसे बच्चे सबसे ज्यादा भयभीत रहे हैं। इन विषयों को सरल बनाने के लिए जोड़ो ज्ञान नाम की संस्था भी काम रही है। ये संस्था गणित और विज्ञान को लेकर कई किट बना चुकी है। इस संस्था का मानना है कि किसी भी विषय को व्यवहारिक रूप से समझाया जाना ज़रूरी है। प्रायोगिक तौर पर बातों को सिखाने की शुरुआत बचपन से ही होनी चाहिए। अपने कार्यक्रम के सिलसिले में जब मैं इस संस्था के एक केन्द्र पर पहुंची तो मुझे तीन क्लास नज़र आई। क्लास के नाम चमकता सूरज और टिमटिमाते तारे और कुछ ऐसे ही थे। पहली क्लास में नन्हे मुन्ने ब्लॉक्स छुपा रहे थे। ये केवल उतने ही ब्लॉक छुपाते हैं जितने कि मैडम के बड़े से डायस को उछालने पर आते हैं। बच्चे अंकों को समझते है वो जानते हैं कि दो क्या है और चार क्या। हां लेकिन, वो अभी लिखना नहीं जानते हैं। यहां अमूर्त गणित को मूर्त रूप से दिमाग़ में सहेजने का काम चल रहा है। स्कूल एक सीधी खड़ी बिल्डिंग में था, सो ऊपर पहुंचने पर हमने देखा कि अलग-अलग उम्र के बच्चे एक साथ काम कर रहे हैं। एक बच्चा स्कैच कर रहा है तो दूसरा उसमें रंग भरेगा और तीसरा उसके बारे में लिखेगा। अलग-अलग उम्र के बच्चों को यूं एक साख देखकर आश्चर्य हुआ। मुझे स्कूल की एक शिक्षक ने समझाया कि इनमें शामिल बड़े बच्चे स्कूल ड्रॉप आउट है। और, यहां सामान्य स्कूलों से इतर साथ काम करना सिखाया जाता है। उनका मानना है कि हमें आगे चलकर साथ मिलकर ही काम करने होते हैं लेकिन, स्कूलों में सिखाया जाता है कि कैसे अलग और अकेले काम किए जाए। प्रतिस्पर्धा इतनी ज़्यादा होती है कि हम साथ काम करना भूल ही जाते है। जबकि यही वो समय है जब साथ रहना आसानी से सीखा जा सकता है। इसके बाद हम पहुंचे सबसे ऊपर बड़े बच्चों की क्लास में जहां बच्चे एक ऐसा प्रयोग कर रहे थे जोकि साल भर तक चलेगा। दिन और रात के अनुपात को समझने का प्रयोग। इसके लिए उन्हें साल भर तक सुबह उठकर सूरज के उगने का समय और शाम को ढलने का समय नोट करना था। इस प्रयोग से जो वो सीखेंगे वो उसे ज़िंदगीभर याद रखेंगे। और, यही तो होती है असल शिक्षा। जोड़ो ज्ञान अपने स्तर पर ज्ञान को सरल और सुगम तरीक़े से जोड़ने का काम कर रहा है। वो सरकारी स्कूलों में इस तकनीक को लागू करवाना चाह रहा है। ये सब बस इसलिए कि बच्चे पढ़े आगे बढ़ने के लिए, ज़िंदगी में उसे ढालने के लिए। ना कि बस रटने के लिए...
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