Friday, August 7, 2009

सब्र रखे इतना वक़्त कहाँ...

आज हर कोई भाग रहा हैं। किसी को ऑफ़िस पहुंचने की जल्दी हैं, तो किसी को घर। हर कोई अपने आप में व्यस्त हैं। किसी के पास एक मिनिट शांति से बैठने की फ़ुर्सत नहीं हैं। हमारे जीवन की ये ज़िंदगी हमारे स्वभाव में भी नज़र आती है। किसी भी बात पर चिढ़ जाना, जल्द पहुंचने की हड़बड़ी में दूसरे को पीछे धकेलना आम बात हो गई हैं। हमारे इसी सब्र और सभ्यता का एक नमूना मैंने कल देखा। आईटीओ से लक्ष्मी नगर की तरफ़ जाते हुए ललिता पार्क बस स्टॉप के पास सड़क से नीचे पूरी एक कॉलोनी बसी हुई हैं। ये शायद लक्ष्मी नगर का ही हिस्सा है। इस कॉलोनी के एक मकान की दीवार पर लिखा हुआ है कि - यहाँ कचरा डालना मना है। जो भी यहाँ कचरा डालेगा उसका सर फोड़ दिया जाएगा।
पहली बार जब मैंने ये पढ़ा तो मैं चौंक गई। मैंने सोचा ये कौन सी सभ्यता है। कचरा डाल देने पर सीधे सर फोड़ देने की धमकी। लेकिन, शायद हमारे अंदर आज सब्र और सभ्य इन दोनों शब्दों के लिए कोई जगह नहीं रह गई हैं। यही वजह है कि आए दिन मोहल्लों में पानी की लाइन और एक दूसरे के आंगन में कचरा फेंक देने पर होनेवाली लड़ाइयाँ अख़बारों के साइड कॉलम में पढ़ने को मिल जाती हैं। हालांकि दुकानों के आगे- पता बताने के पाँच रुपए और गाड़ी खड़ी करने पर उसकी हवा निकाल दी जाएगी, जैसी चेतावनियाँ कई बार पढ़ी हैं। लेकिन, सर फोड़ देनेवाली धमकी पहली बार पढ़ने को मिली। मै कल से इस चेतावनी को लिखनेवाले की मनोदशा की कल्पना कर रही हूँ। क्या वो कचरा फेंकनेवालों से इतना परेशान हो चुका होगा कि अब किसी ने ये हरक़त की तो वो सीधे मार पीट पर उतर आएगा। क्या कभी उसने ऐसे लोगों को समझाने की कोशिश की होगी। यही सोचते-सोचते मुझे मुन्नाभाई पार्ट टू का वो दृश्य याद आ गया जहाँ गांधीजी मुन्ना के ज़रिए उस लड़के को शांत रहने की सलाह देते हैं जिसके घर के आगे एक दंबग आदमी रोज़ाना थूकता था। उस धमकी को पढ़ने के बाद एक बात तो तय है कि आज लोगों के पास किसी और को सुधारने का वक़्त और सब्र नहीं...

2 comments:

संदीप said...

आप लोगों के इस ब्‍लॉग का उपशीर्षक-सबहेड-विवरण, जो भी कहा जाए इसे, मजेदार लगा..

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर बात!