Monday, December 7, 2009

नियमों का पालन करनाः क्यों मज़ाक करते हो...

कभी-कभी सभ्य होना या फिर नियमों का पालन करना एक बोझ-सा लगता है। मैं आजकल मैट्रो से ऑफ़िस आती हूँ। अक्षरधाम मैट्रो स्टेशन तक पहुंचने के लिए एक लंबी चौड़ी व्यस्त सड़क को पार करना होता है। इसके लिए मैट्रो की तरफ से एक लोहे का फ़ुट ओवर ब्रिज बनाया गया है। इस फ़ुट ओवर ब्रिज पर कई बार मुझे लगता है मैं अकेली ही चढ़ती हूँ। ऊपर से जब नीचे देखती हूँ तो कई ऑफ़िस और कॉलेज जानेवाले सड़क को कूद-फांदकर पार करते दिखाई देते हैं। इसके बाद मैट्रो में कई ऐसी बातें होती देखती हूँ जिन्हें देख मन कचवा जाता है। आज सुबह ही लगभग 20 या 21 साल के एक लड़के से मैंने जबरन बात की। ये लड़का देखने में किसी दुकान या फिर ऑफ़िस में चपरासी या ऐसी ही कोई नौकरी करता होगा। लड़का ज़ोर-ज़ोर से मोबाइल पर गाने सुन रहा था। मेट्रो में संगीत बजाना मना है। क्योंकि, गाड़ी में लगातार वो सूचना देते रहते हैं जिसे सुनकर ही यात्रियों को आगे की सही जानकारी मिलती हैं। ऐसे में गाड़ी में जो़र से संगीत बजाना मना है। इसके बावजूद वो लड़का पूरे आराम से गाने सुन रहा था। लड़का बैठा हुआ था और मैं खड़ी। मैं बिल्कुल लड़के के आगे खड़ी हो गई और उसे घूरना शुरु कर दिया। लड़का कुछ परेशान होने लगा। मुझे लगा कि शायद वो अपनी ग़लती मेरे बिना कहे समझ जाएगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। वो कुछ असहज तो हुआ लेकिन, उसने अपने मोबाइल पर बज रहा वो गाना बंद नहीं किया। बाराखंबा आते-आते मुझे लगा कि राजीव चौक पर तो मैं उतर जाऊंगी और ये तो यूँ गाने बजाता रहेगा। फिर मैंने उस गर्दन ज़मीन में घुसाए हुए लड़के के कंधे पर हाथ रखा वो घबरा गया। मैंने उससे पूछा कि क्या आप मेट्रो में पहली बार चढ़े हैं। वो कुछ नहीं बोला। मैंने फिर वही सवाल किया। इस बार उसने कहा कि नहीं। तो मैंने कहा- तो क्या आपको ये मालूम नहीं कि यूँ मेट्रो में लाउडस्पीकर पर संगीत चलाना मना हैं। लोग इस गाड़ी में हो रही घोषणाओं को सुन रहे हैं उन्हें परेशानी होगी। आपके पास इतना महंगा और सुन्दर मोबाइल है तो इयरपीस भी होगा। वैसे भी वो तो मुफ़्त में मिलता है। आपको इतनी तो समझ होनी चाहिए। मैं बोलती रही और वो चुपचाप सुनता रहा। मेरा स्टॉप आ गया और मैं उतर गई। मैं परेशान हूँ ऐसे लोगों से जोकि एक समाज का हिस्सा होकर भी अकेले अपनी सोचते हैं। खैर, वो अकेला नहीं हैं उसकी पूरी एक जमात हैं। जोकि हम जैसे नियम माननेवालों से बड़ी है। इस जमात में फ़ुट ओवर की जगह सड़क कूदनेवाले, मेट्रो के फ़्लोर पर बैठनेवाले, संगीत सुननेवाले, उतरनेवालों को रास्ता ना देनेवाले और उन्हें धक्का देनेवाले, स्टेशन पर चुपचाप फ़ोटो खिंचनेवाले शामिल हैं। मेट्रो में चलनेवाले भले ही पढ़े-लिखे और कुछ एलीट लगे लेकिन, अंदर से वो भी बसों में आगे से चढ़नेवाले और स्टॉप के पहले या रेड पर चढ़ने-उतरनेवाले ही हैं...

2 comments:

अजय कुमार झा said...

बहुत ही सटीक बात कह दी आपने ...मैं भी अक्सर यही सब देखता हूं और तब मुझे एक बात याद आती जो बहुत पहले कोई कह गया था ..हालांकि तब मुझे बहुत गुस्सा आया था ..
यहां के लोगों को नागरिक कानूनों की बिल्कुल समझ नहीं है क्योंकि उनमें civic sense की कमी है ..

विवेक रस्तोगी said...

वही तो मेट्रो चलाने से पहले इन लोगों को यात्रा करने की ट्रेनिंग देना जरुरी है..