कभी पुलिया पर बैठे किचकिच करते थे... अब कम्प्यूटर पर बैठे ब्लागिंग करते हैं...
Tuesday, January 19, 2010
काली पन्नी...
काले रंग का सबसे बढ़िया इस्तेमाल शायद छुपाने में होता है। अंधेरे में आप कुछ भी कर सकते हैं। कार के शीशों पर काली फ़िल्म भी इसीलिए चढ़ाई जाती है। घरों में भी ऐसे ही शीशे काम आते हैं। और, ऐसी ही होती है काली पन्नियाँ। दबी छुपी चीज़ों की खरीददारी में सबसे ज़्यादा काम आनेवाली। सामान्यतः ये पन्नियाँ डस्टबीन पॉलिथीन के रूप में काम आती हैं। माने कि कचरा इसमें भरिए और फिर फेंकने जाईए। आपके घर की गंदगी को कोई और न देख पाएं। मेरे एक मित्र है उनके हाथ में हर छुट्टी के दिन काली पन्नी होती हैं। दरअसल वो चिकन लेकर आते हैं। जोकि दुकानदार हमेशा काली पन्नी में ही देता हैं। अब मुझे ये नहीं मालूम की वो ऐसा क्यों करता हैं। ऐसे ही कल मुझे मेडिकल स्टोरवाले ने काली पन्नी पकड़ाई। मैं वहाँ सैनेटरी नेपकिन लेने गई थी। दुकानदार ने बहुत दबे छुपे अंदाज़ में उसे नीचे रखकर काली पन्नी में पैक किया और फिर मुझे दिया। मुझे ये बात हमेशा से ही अखरती है कि आखिर ऐसा क्यों। मैंने कई बार अपनी दोस्तों को दबे छुपे अंदाज़ में नैपकिन खरीदते देखा हैं। दुकान पर जाते ही कई बार वो अंकलजी से पूछती है कि अंटी कहाँ हैं। अंकल भी झट से समझ जाते हैं और अंटी को भेज देते हैं। आखिर नैपकिन जो खरीदना हैं। हमारे समाज ऐसी कई बातें हैं जोकि आज भी छुप-छुप के होती हैं। नैपकिन का एड आते ही मम्मी का चैनल बदल देता आज भी कायम हैं। मैं हमेशा से ही इस बात का विरोध करती रही हूँ। लेकिन, हर बार मुझे चुप करा दिया जाता है। मेरे मुताबिक़ इस तरह से हम काले रंग का दुरुपयोग करते हैं। इस तरह की बातों को छुपाने के पीछे का अर्थ मेरी समझ से परे हैं। आखिर इसमें ऐसा क्या है जो प्राकृतिक नहीं हैं। या फिर ऐसी क्या है जिस बात पर शर्मिंदा हुआ जाए...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
आखिर इसमें ऐसा क्या है जो प्राकृतिक नहीं हैं। या फिर ऐसी क्या है जिस बात पर शर्मिंदा हुआ जाए...
बिलकुल सही और ज़ायज प्रश्न है?
Post a Comment