Thursday, March 4, 2010

क्या करें क्या ना करें...

प्यार करना बच्चों का खेल नहीं और उससे भी मुश्किल है उस प्यार को ज़िंदगीभर शादी के रूप में निभाना। आज के इस समाज में प्रेम विवाह में जो तेज़ी आई बदलाव तो दर्शाती है साथ ही युवाओं की फैसले लेने की क्षमता भी बताती है। ये बात अलग है कि पिछले पाँच से छः सालों में हुए ये फैसले आनेवाले कुछ दस सालों में बताएंगें कि फैसले सही थे या ग़लत। प्रेम विवाह के लिए असहमति रखनेवाले माता-पिता बच्चों से पल्ला झाड़ लेते हैं लेकिन, इसे स्वीकृति देनेवाले भी आनेवाली परिस्थितियों में बच्चों का साथ ना निभाने की धमकी साथ दे देते हैं। सारांक्ष ये कि प्रेम विवाह ढ़ेढ़ी खीर हैं। लेकिन, पिछले कुछ दिनों से आसपास के अनुभवों को सुनकर लगता है कि अरेन्ज शादियाँ इनसे भी मुश्किल हैं। मेरी दोस्त की शादी कुछ महीनों बाद है वो प्रेम विवाह कर रही है। उसकी बड़ी बहन की शादी अभी नहीं हुई है वजह ये कि उसके माता-पिता बहन के मुताबिक़ लड़का नहीं खोज पा रहे हैं। मेरे बड़े भाई के लिए लड़की खोजना भी हमारे लिए मुश्किल का काम बनाता जा रहा है। इतनी सारी बातों का ध्यान रखना, हर कसौटी पर लड़का और लड़की को परखना कोई आसान काम नहीं। कल मेरी दोस्त का फोन आया उसे देखने एक लड़का आनेवाला है। वो लड़के से माता-पिता की इजाज़त से फोन पर बात कर चुकी है। लड़का उसे अच्छा और समझदार लगा। इसी बीच उसके पिता उससे मिलने गए और उन्हें वो कुछ ख़ास नहीं लगा। माँ-बाप हमेशा ही बच्चों के लिए बेस्ट खोजते हैं और उन्हें अपने बच्चे सबसे सुन्दर लगते हैं। मेरी दोस्त बीच में फंसा हुआ-सा महसूस करने लगी है। बातों-बातों में ही उसने कहा कि क्या यार ऐसी ही परिस्थिति में पड़ना तो अपनी पसंद से ही ना कर लेती मैं शादी। सच है माता-पिता की उम्मीदों, सामनेवाले इंसान और उसके परिवार की उम्मीदों सभी का बोझ आज उसके कंधों पर हैं। ऐसे में फैसला लेना और उस सही या ग़लत फैसले को ज़िंदगीभर ढोना बहुत ही भयानक होगा। समाज बदल रहा है लेकिन, सिर्फ़ प्रेम विवाह के मामले में नहीं बल्कि अरेन्ज शादियों के मामले में भी। अब माता-पिता अपनी मर्ज़ी चलाते हैं तो लेकिन, बच्चों के कंधों पर पसंद-नापसंद की शर्त पर...

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