मैं राजीव चौक मैट्रो स्टेशन पर ट्रेन के इंतज़ार में खड़ी हुई थी। मेरी साथवाली लाइन में एक अंकल खड़े हुए थे। उन्होंने एक बार इधर देखा फिर उधर देखा। जेब से गुटखे का पाऊच निकाला और धीरे से उसे फाड़ा। मुंह में गुटखा डाला और धीरे से खाली पाऊच वही फेंक दिया। इसके बाद नासमझी का कुछ ऐसा अभिनय शुरु किया कि अच्छे-अच्छे अनके सामने पानी भरे। मैं उनके पास गई उस पाऊच को उठाया और उन अंकल से मैंने कहा कि आपकी ओर से मैं इसे कचरे के डिब्बे में फेंक दूंगी। उन्होंने कुछ नहीं कहा। मैंने भी उसे जेब में रख लिया और वापस लाइन में लग गई। मेरा ऐसा करना कोई नई बात नहीं है। लेकिन, बस मुझे खुद पर अफसोस हुआ कि मैं क्यों मैट्रो को सभ्यता से जोड़कर देखने लगी थी। मैं ये सोचती थी कि इस तरह की विश्वस्तरीय सवारी में लोग उसकी और अपनी इज़्ज़त के लिए ही सही इसे साफ रखेंगे। मैट्रो में दिन रात सफाई करते कर्मचारियों को देखकर ही सही लेकिन, कचरा नहीं फैलाएगे। लेकिन मैं ग़लत थी...
मेरी मम्मी से अगर मुझे कुछ विरासत में मिला है तो वो है सफाई करने की आदत। मेरी मम्मी हद से ज़्यादा सफाई पसंद है। हमेशा उन्हें घर की सफाई की चिंता रहती हैं। बिना किसी और बात या सेहत की चिंता किए वो साफ सफाई में जुटी रहती हैं। मैं भी ऐसी हूँ ये बात मुझे तब समझ में आई जब मैं उनसे अलग होकर रहने लगी। दिल्ली में अकेली रहने के बाद मुझे ये समझ में आया कि मैं तो सफाई के बारे में सामान्य से ज़्यादा सोचती हूँ। खैर, मैं मम्मी जैसी होते हुए भी कुछ अलग हूँ। मेरी मम्मी घर की सफाई के लिए चिंतित ज़रूर रहती हैं लेकिन, घर के बाहर खासकर सार्वजनिक स्थलों की सफाई को लेकर उन्हें कोई चिंता नहीं हैं। वो कचरा नहीं फैलाती लेकिन, दूसरों के फैलाने पर उनसे लड़ती भी नहीं हैं। मैं इस मामले में कुछ संवेदनशील हूँ। जब भी किसी को ऐसी जगहों पर कचरा फैलाते देखती हूँ तो कुछ न कुछ बोल ही देती हूँ। अगर बोलने की परिस्थिति न हो तो मन मसोसकर रह जाती हूँ। नहीं तो वही करती हूँ जिसका मैंने शुरुआत में ज़िक्र किया। मेरे कई दोस्त मुझे चलता फिरता कचरे का डिब्बा बोलते है। मैं हमेशा से ही इस्तेमाल के बाद कचरे को डिब्बा न दिखाई देने पर बैग में भर लेती हूँ। दोस्तों को भी फेंकने नहीं देती हूँ, अगर फेंक भी दिया तो उठा लेती हूँ और अपने पास रख लेती हूं। कइयों के लिए मैं मज़ाक का विषय हूँ लेकिन, मुझे इस बात का अफसोस नहीं...
6 comments:
अच्छी आदतों का मजाक भी बने तो परवाह नहीं करनी चाहिए...जिस काम को करने में सुकून मिले वही करना चाहिए....शुरुवात होगी काफिला बढ़ता जाएगा
चलो कोई तो अच्छा कम कर रहा है ... .....
पढ़े और बताये कि कैसा लगा :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html
आप दिल्ली में रहकर सफाई के बारे में चिंतित हैं पर ज्यादातर लोग तो केवल M C D को कोसते हैं और गन्दगी फैलाते रहते हैं
इस तरह कचरा करना बहुत गंदी आदत है. मैं हमेशा कोशिश करता हूँ की कचरे को कचरा-डब्बे में ही डालूँ या किसी चीज़ में रखकर घर तक लेता चलूँ.
सिंगापूर में तो गन्दगी करने पर बहुत बड़ा जुर्माना है. पांच-छः फीट की ऊँचाई पर सरकारी बल्ब आदि खुले लगे होते हैं पर मजाल है कि कोई निकाल ले.
बहुत अच्छी पोस्ट। हम बाकी बातों मे विदेशियों की नकल करते हैं मगर अच्छी बातों मे नही हम से अधिक वो लोग इस मामले मे सतर्क हैं आप बहुत अच्छा करती हैं। पता नही अपने लोग सफाई का महत्व कर समझेंगे! सार्थक पोस्ट। बधाई
जीवन जीने का तरीका
मैं भी सीख गया जी, धन्यवाद इस पोस्ट के लिये।
प्रणाम
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