Thursday, September 23, 2010

टीवी डराता है...

टीवी कल तक सिर में दर्द पैदा करता था। लेकिन, अब वो डराने लगा है। यहां डर भूत-प्रेत का नहीं हैं या फिर किसी भयावह परिस्थिति का नहीं है। यहां डर सामाजिक है। कल एक नया सीरियल देखा। एक बौनी लड़की की परेशानियों से जुड़ा हुआ। वैसे तो लड़कियों को कई तरह की परेशानियां होती हैं लेकिन, टीवी की लड़कियों को केवल शादी की। जब तक कुंवारी है शादी होने की और जब हो जाएं तो घर और पति को खुश रखने की। किसी भी मुद्दे पर आप सीरियल को शुरु किजिए उसका अंतहीन कॉन्सेप्ट ले दे के लड़की की शादी और परिवार पर ही आकर रुक जाएगा। खैर, इस सीरियल में तो पहले ही एपिसोड से मुद्दा लड़की के लिए लड़का ढ़ूंढना है। एक सीरियल में लड़की का चेहरा जला हुआ है सो उसकी शादी में समस्या, एक में वो देवी का रूप है सो शादी की समस्या, एक में कही किसी जगह कोई सफेद दाग है सो शादी की समस्या। लड़कियां अलग-अलग, परेशानियां अलग-अलग, पृष्ठभूमि अलग-अलग, लेकिन समस्या एक ही - शादी। लड़कियों की हरेक समस्या का समाधान जैसे कि शादी में ही छिपा हुआ हैं। इनमें से किसी भी सीरियल में ये नहीं दिखाया जाता है कि लड़की करियर बनाना चाहती है या फिर अपनी ज़िंदगी अपने मुताबिक़ जीना चाहती हैं। यहां तो लड़की के बीस या इक्कीस के होते ही माँ बाप की रातों की नींद उड़ जाती हैं। लड़की में कोई कमी हो तो और भी ज़्यादा। मुझे तो कई बार अपने ही मम्मी पापा से पूछने का मन होता है कि- आपकी बेटी तो टीवी के मुताबिक़ बहुत बड़ी हो गई है और आप है कि आराम से सोते हैं। खैर, टीवी पर कुछेक सीरियल बीच में आते हैं जोकि इस डकियानूसी लीग से हटकर होते हैं। लेकिन, वो जल्द ही या तो बंद हो जाते हैं या फिर अपना ट्रैक बदल लेते हैं। सुन्दरता को अभिशाप के रुप में पेश करनेवाले एक सीरियल का यही हाल होते मैं देख रही हूँ। सच कहूँ तो हरेक सीरियल देखकर मैं रोज़ाना किसी न किसी बात पर डर जाती हूँ। कभी अपनी लंबाई नापने लगती हूँ, तो कभी आंखें चैक करती हूँ, तो कभी कुछ और। हालांकि एक सीरियल में लड़के की कमजोरी को भी दिखाया जा रहा है लेकिन, उस कमज़ोरी के चलते न उसको और न ही उसके घरवालों को परेशान या फिर लड़की के माता-पिता की तरह झुकते हुए दिखाया गया हैं। उसके पलट वहाँ भी एक दूसरी कमज़ोरी से जूझ रही लड़की को ही लोगों के तानों और परेशानी का शिकार बताया गया हैं। सच में टीवी के ये सीरियल और उसमें नज़र आनेवाली लड़कियाँ और उनके माता-पिता मुझमें एक डर पैदा करने लगे है...

2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

बहुत अच्‍छा आलेख। हमारे समाज का यही सच है कि लड़की किसी न किसी के आश्रित रहनी चाहिए। इस‍ीलिए वे अन्तिम लक्ष्‍य विवाह ही रखते हैं। मैं तो धारावाहिक देखती नहीं, वैसे बिना सर-पैर के धारावाहिकों को नहीं देखना ही हितकर है।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

दीप्ति जी, सही कहा आपने, पर अफसोस कि हम इस डर का कुछ कर नहीं सकते।
एक सार्थक सोच के लिए बधाई स्वीकारें।