कभी पुलिया पर बैठे किचकिच करते थे... अब कम्प्यूटर पर बैठे ब्लागिंग करते हैं...
Thursday, December 17, 2009
लड़की हो तो ग़लती तुम्हारी...
आज सुबह-सुबह टीवी ऑन करते ही अरूणा के बारे में ख़बर देखी। अरूणा मुंबई के एक अस्पताल में पिछले 36 साल से पड़ी हुई हैं। वो एक नर्स थी और वो जब चौबीस साल की थी अस्पताल के ही एक वार्ड बॉय ने उसके साथ बलात्कार किया था। तब से ही वो उसी अस्पताल के एक बेड पर पड़ी हुई है। 60 की हो चुकी अरूणा के लिए कुछ स्वयंसेवी सस्थाएं मौत मांग रही हैं। उनका कहना है कि उसे जबरन में खाना खिलाना बंद कर देना चाहिए जिससे कि वो एक शांत मौत मर सकें। बलात्कार के उस आरोपी को सात साल की सज़ा हो चुकी हैं जिसे वो भुगत भी चुका हैं। लेकिन, असल सज़ा तो अरूणा भुगत रही है। जिस पर अत्याचार हुआ वही उस अत्याचार की सज़ा भी भोग रही हैं। अरूणा की कहानी दिल को हिला देनेवाली है। लेकिन, वो अकेली नहीं है। लड़कियों के साथ होनेवाले अपराधों पर अगर एक नज़र डाले तो यही मिलेगा कि आरोपी से ज़्यादा उसकी शिकार हुई महिला भोगती हैं। और, इस सबके बाद सुनने को मिलते हैं कुछ बयान जैसे कि लड़की का बलात्कार जिसने किया वो उसका दोस्त था तो ग़लती उसकी भी हैं या फिर एक लड़की रात के दो बजे दिल्ली की सड़क पर क्यों ड्राइव कर रही थी। अरूणा सुन्दर थी। काम काज में। हरेक से अच्छे से बात करती थी। अब ये उसकी ही ग़लती थी कि उसमें ये गुण थे कि वो आकर्षित करें। लेकिन, वो उतनी भी आकर्षक नहीं थी कि इस घटना के बाद भी उसके घरवाले उसका साथ निभाते या वो लड़का उसके साथ रहता जो उससे शादी करनेवाला था। ग़लती सिर्फ़ लड़कियों की होती हैं। उनके साथ कोई भी गुनाह हो ग़लती उनकी ही होती हैं। वो ग़लती है कि वो लड़की है...
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6 comments:
परमात्मा उसके जिन्दा शरीर के अन्दर या मुर्दा शरीर के बाहर रहने वाली आत्मा जैसी चीज को शांन्ित दे।
इन सड़े हुए लोगो के लिए हर गली नुक्कड़ पर एक डस्ट बिन होना चाहिए.. जिनमे इन्हें फेंककर ढक्कन बंद किया जा सके..
समझ नहीं आता क्या कहूँ.. ?
यही वे घटनाएं हैं जो मन में ये आवाज उठाती हैं कि बेशक एक आम कानून के रूप में न सही मगर इस तरह के अपराध करने वालों को मौत से भी बदतर यदि कोई सजा हो तो वो देनी चाहिए । बेशक इससे अरूणा की जिंदगी या मौत पर कोई फ़र्क न पडे मगर हो सकता है कि कोई दूसरी अरूणा तो बच पाए ...॥
कमाल की बात है यही झा साहब अभी एक जगह इस बात का सपोर्ट करके आये है के महिलाए बहलाने फुसलाने में ज्यादा पारंगत होती है .यहाँ आकर भी खीसे निपोर रहे है अजीब लोग है अरुणा के बारे में पढने आई थी यहाँ इनका कमेन्ट देखकर मन अजीब वित्रश्ना से भर गया
तरन्नुम जी,
मैं कभी भी किसी पोस्ट को पढने से पहले या बाद में उसके प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर कुछ नहीं लिखता ....। अब यदि आपको उस लेख जो कि बेहद ही हल्के फ़ुल्के अंदाज में और हास्य का पुट लिए हुए था और यहां किसी बलात्कार पीडिता की घटना में कोई फ़र्क नहीं दिख रहा तो मैं क्या कह सकता हूं । रही बात मेरे खींसे निपोरने की .तो क्या करूं इश्वर ने शक्ल ही ऐसी दी है ...आपकी तो दिख नहीं रही कि कह सकूं कि आप मुस्कुरा रही हैं या सिर्फ़ वित्रषणा से ही मन भरा हुआ है । वैसे मेरी टिप्पणी पर टिप्पणी कर मेरे लिए इतने अच्छे विचार जाहिर करने के साथ यदि इस पोस्ट के बारे में भी कुछ कह जाती तो शायद लेखिका को भी संतोष होता कि आपने उन्हें पढा । दीप्ति जी , आपके पोस्ट पर ऐसा लिखने के लिए माफ़ी ...नियमित पाठक होने के नाते शायद आप मुझे समझ सकेंगी ॥ तरन्नुम जी का भी आभार कि स्पष्ट कहा जो मन में था ॥
अरे तरन्नुम जी ,
आपके तो ब्लोग का नाम ही मुस्कान है ....फ़िर भी खींसे निपोरने पर मन वित्रशणा से भरा ...और हां मुस्कान बिखेरने के लिए ..कभी कभी कुछ लिखिए तो सही ...आपके ब्लौग का फ़ौलोवर बन गया हूं ...अब उसमे मेरी फ़ोटो दिखाई दे रही है ...अब ये गूगल की गलती है ..उम्मीद है आपको इसमें मुझ से कोई शिकायत नहीं होगी
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