कभी पुलिया पर बैठे किचकिच करते थे... अब कम्प्यूटर पर बैठे ब्लागिंग करते हैं...
Monday, May 3, 2010
आखिर हम हैं कैसे...
हम रोज़ाना कुछ न कुछ नया सीखते हैं। घर में रहते हुए भी और घर से निकलकर भी। ख़ासकर अगर हम अकेले किसी सफ़र पर हो। ऐसे समय में हम इतने अकेले होते हैं कि चुपचाप दूसरों को देखते रहते हैं और उनकी हरक़तों को पढ़ते रहते हैं। आज भी ऐसा ही हुआ। मैट्रो के सफ़र के दौरान दो बार मुझे ऐसे बुज़ुर्ग दिखे जो टीनएजर बच्चों को बातें सिखाने की कोशिश कर रहे थे। बुज़ुर्ग पूरे मन से बच्चों को नसीहतें दे रहे थे कि पहले उतरनेवालों को जगह दो, मैट्रो में मस्ती मत करो और भी बहुत कुछ। वही दूसरी ओर वो युवा उनकी बातें अनमने ढंग से इधर उधर करके सुन रहे थे। बुज़ुर्ग के जाते ही वो पीछे से बोलते हैं क्या यार बकवास करते रहते हैं। दरअसल में हम जब बड़े हो रहे होते हैं तो हमें बड़ों की नसीहतें बहुत भारी और झिलाऊ लगती हैं। हम पहले तो उन्हें सुनना नहीं चाहते और सुन भी लेते हैं तो उसे मानने से कतराते हैं। वही जब हम बड़े हो जाते हैं तो अपनी ही इस बात को भूलकर सलाहें देना शुरु कर देते हैं। मैं न तो टीनएजर हूँ और नहीं इतनी बड़ी कि मेरे कोई बहुत बड़े अनुभव हो। मैं कही बीच में लटकी हुई हूँ। युवाओं की उस चीढ़ को भी समझती हूँ और बुज़ुर्गों की उस सलाह के मायने को भी। लेकिन, फिर भी मैं तब से यही सोच रही हूँ कि आखिर हम हैं कैसे...
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4 comments:
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट...
कल ही ट्रेन में एक बुजुर्ग बोल रहे थे, मुझे उनकी यह बात बडी अच्छी लगी "आज हम नौजवानों को डांटने और रोकने लग जाते हैं,हम लोग (बुजुर्ग)भूल जाते हैं कि हम भी इसी तरह धींगा-मस्ती करते थे, इसी तरह गाने गाते थे। उम्र के साथ हमारी विचारधारा भी ना जाने क्यूं बदलने लगती है"
प्रणाम
bahut khub
bahut khub
badhai aap ko is jankari ke liye
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