Tuesday, January 25, 2011

सचिन तो ध्यानचंद क्यों नहीं ?

मैने मेजर ध्यानचंद को कभी हॉकी खेलते नहीं देखा लेकिन मैने सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट में इतिहास रचते ज़रुर देखा है! क्रिकेट के खेल में एक के बाद एक रिकॉर्ड तोड़ते और नया कीर्तिमान रचते सचिन पूरी दुनिया के हीरो बन चुके हैं! आज का हर खेलप्रेमी युवा उनको अपना आदर्श मानता है! मैं भी सचिन की प्रतिभा का कायल हूं! मुझे आज भी वो दिन याद है जब पाकिस्तान के सईद अनवर ने मुंबई में सियाराम कप के दौरान एक सौ छियानवें रन बनाया था! उस वक्त मैं मैच नहीं देख पाया था! बिजली नहीं थी और हमने सईद की धुंआधार पारी रेडियो पर सुनी थी! तब से लेकर दो हजार दस तक मैने क्रिकेट के बारे में बस यही सपना पाला था कि अगर कोई अनवर का रिकॉर्ड तोड़े तो वो सचिन ही हो! और जब सचिन ने इसे पूरा किया और ग्वालियर के मैदान में वन डे इतिहास का दोहरा शतक ठोंका तो लगा कि जैसे सचिन ने मेरे लिए ही ये डबल सेंचुरी लगाई हो! वन डे हो या टेस्ट सचिन इज़ द बेस्ट! क्रिकेट जगत में सचिन की तुलना ऑस्ट्रेलिया के सर डॉन ब्रैडमैन से की जाती है! यहां तक की क्रिकेट के कई जानकारों ने सचिन को उनसे बेहतर भी बताया है! लगातार बीस साल से अधिक समय से क्रिकेट खेल रहे सचिन आज सर्वश्रेष्ठ मुकाम पर पहुंच चुके है! उनकी इस उपलब्धि के चलते उन्हें भारत रत्न से नवाज़ने की मांग की जा रही है! स्वर सामज्ञी लता मंगेशकर ने भी सरकार से बार-बार ये मांग दुहराई है! हो सकता है इस बार सचिन को देश का ये शिखर सम्मान दे भी दिया जाए! वो इसके हक़दार भी हैं! लेकिन क्रिकेट में देश के लिए सचिन के योगदान को बिना कम आंके हुए मेरा एक सवाल है! अगर सचिन भारत रत्न के हकदार हैं तो हॉकी के जादूगर माने जाने वाले मेजर ध्यानचंद क्यों नहीं ? भारत के राष्ट्रीय खेल को शीर्ष पर पहुंचाने वाले मेज़र ध्यानचंद को क्यों इस सम्मान के काबिल नहीं समझा जा रहा है! मैं पहले ही बता चुका हूं की मैंने ध्यानचंद का खेल नहीं देखा है लेकिन अख़बारों, टीवी और इंटरनेट पर मिली जानकारी के मुताबिक उन्हें यूं ही हॉकी का जादूगर नहीं कहा जाता था! 1928 का एम्सटर्डम समर ओलंपिक हो, 1932 का लॉस एंजिलिस हो या फिर 1936 का बर्लिन हो! सब जगह ध्यानचंद का जादू सर चढ़ कर बोला! तीनों ओलंपिक में भारतीय हॉकी का इतिहास स्वर्ण से लदा हुआ है! 1932 में तो मेजबान यूएसए को रिकॉर्ड 24-1 से हराने में में मेजर ने आठ गोल दागे थे! बताया जाता है कि एक दौर ऐसा था जब भारतीय हॉकी टीम अजेय मानी जाने लगी थी! इन तीन ओलंपिक के अलावा दूसरे टूर्नामेंटों में भी ध्यानचंद की हॉकी स्टिक ने कमाल दिखाया! कुछ लोग ये भी बताते हैं कि हिटलर ने उन्हें जर्मनी की तरफ से खेलने का न्योता दिया था लेकिन देशप्रेमी ध्यानचंद सिंह ने उसे ठुकरा दिया था! ऐसे में पद्म भूषण मेजर ध्यानचंद को किसी भी मायने में भारत रत्न के लिए कमतर नहीं माना जा सकता!

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