कभी पुलिया पर बैठे किचकिच करते थे... अब कम्प्यूटर पर बैठे ब्लागिंग करते हैं...
Monday, January 3, 2011
सिनेमा को समझनेवालों के लिए...
कुछ दिन पहले ही मैंने नेट पर उर्फ़ प्रोफेसर देखी। पंकज आडवाणी की निर्देशित ये फिल्म सिनेमा घरों तक नहीं पहुंच पाई है। आडवाणी ने इस फिल्म की एडिटिंग भी की हैं। यूं ही नेट की सैर के दौरान मैंने इस फ़िल्म के बारे पढ़ा। फिर पढ़ा कि पंकज आडवाणी जाने भी दो यारो में कुंदन शाह के सह-लेखक रह चुके हैं और संकट सिटी भी पंकज की ही फ़िल्म थी। साथ ही ये भी पता चला कि मात्र 45 साल की उम्र में उनकी हार्ट अटैक से मौत भी हो गई। उर्फ प्रोफेसर के बारे में जिसने भी लिखा बहुत तारीफ की और उसे हिन्दी सिनेमा में अब तक की बनी हास्य फिल्मों में श्रेष्ठ तीन में शामिल किया। सो, इंटरनेट पर ही मैंने इस फिल्म को खोजना शुरु किया। और, एक दिन देख भी डाली। मैं इस लेख के ज़रिए फिल्म की समीक्षा नहीं कर रही हूँ। क्योंकि मुझे समीक्षा लिखना आता नहीं है। खैर, मैं केवल ये बताना चाह रही हूँ कि एक फिल्म है जिसका नाम उर्फ प्रोफेसर है और उसे हरेक उस इंसान को देखना चाहिए जोकि सिनेमा देखने और उसे समझने में दिलचस्पी रखता हैं। उर्फ प्रोफेसर बहुत ही कम लागत में बनी, एवरेज कैमरा एंगल और कुछ बेहतरीन लेकिन, कम बजटवाले कलाकारों की फिल्म है। इस फिल्म में अगर कुछ हैं तो वो है इसकी कहानी और उस कहानी को पर्दे पर उतारने का तरीक़ा। फिल्म में किसी को मारते या गाली देते या शारिरीक संबंध बनाते हुए ऐसे दिखाया गया है जैसे कि सामान्यतः आप और हम सांस लेते हैं। पूरी फिल्म में केवल एक किरदार ऐसा है जिसे किसी के भी मरने का दुख होता हैं। बाक़ियों के लिए किसी को मारना या मरते देखना ऐसा है जैसे मूंगफली छीलकर खाना। फिल्म आपको पूरे समय बांधे रखती हैं। मैं फिर ये कहना चाहती हूँ ये समीक्षा नहीं हैं बस इतना कहना है कि आप अगर सिनेमा को प्यार करते हैं और समझते हैं तो इसे ज़रूर देखे। इसे देखे बिना आपकी वो समझ पूरी नहीं होगी।
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1 comment:
thnaks will see it.....
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